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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
लेके चन्दन क्षमाभावमय प्रभु, ईर्ष्या द्वेष मिटाव अहो विभु।
वीर शासन जयन्ती मनावें, वीर को पूज निजपद को ध्यावें।। ॐ ह्रीं श्री सन्मतिवीरजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा ।
भाव अक्षत सहज अविकारी, भक्ति प्रभु की सदा सुक्खकारी।
वीर शासन जयन्ती मनावें, वीर को पूज निजपद को ध्यावें॥ ॐ ह्रीं श्री सन्मतिवीरजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।
बालयति हो प्रभो योगधारा, देव ऐसा ही भाव हमारा।
वीर शासन जयन्ती मनावें, वीर को पूज निजपद को ध्यावें॥ ॐ ह्रीं श्री सन्मतिवीरजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।
तृप्ति निज में प्रभो निज से पाई, ऐसी तृप्ति हमें भी सुहाई।
वीर शासन जयन्ती मनावें, वीर को पूज निजपद को ध्यावें॥ ॐ ह्रीं श्री सन्मतिवीरजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
ज्ञानमय दीप प्रभु ने जलाया, ज्ञानमय भाव हमको दिखाया।
वीर शासन जयन्ती मनावें, वीर को पूज निजपद को ध्यावें॥ ॐ ह्रीं श्री सन्मतिवीरजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
ध्यानमुद्रा जिनेश्वर सुहावे, देख पुरुषार्थ अन्तर जगावे ।
वीर शासन जयन्ती मनावें, वीर को पूज निजपद को ध्यावें। ॐ ह्रीं श्री सन्मतिवीरजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।
देख आराधना का महाफल, लगते निस्सार सब ही करमफल।
वीर शासन जयन्ती मनावें, वीर को पूज निजपद को ध्यावें॥ ॐ ह्रीं श्री सन्मतिवीरजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
आत्मवैभव अनर्घ्य दिखाया, अर्घ्य हमने भी जिनवर चढ़ाया।
वीर शासन जयन्ती मनावें, वीर को पूज निजपद को ध्यावें॥ ॐ ह्रीं श्री सन्मतिवीरजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्ताय अयं निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला
(दोहा) विपुलाचल पर जब प्रथम, खिरी दिव्यध्वनि सार। भविजन अति हर्षित हुए, गूंजा जय-जयकार ।।
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