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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह हुआ सहज संतुष्ट जिनेश, अब वांछा प्रभु रही न लेश। निज प्रभुता निज में विलसाय, काल अनन्त सु मग्न रहाय॥ धर्म पर्व मंगलमय सार, जिस निमित्त हो तत्त्व विचार । कर उद्यम पाऊँ पद सार, जय जय समयसार अविकार ।। पर्व अठाई मंगलरूप, ध्याऊँ निज अनुपम चिद्रूप। नित्य पवित्र परम अभिराम, शाश्वत परमातम सुखधाम । स्वयं सिद्ध अकृत्रिम जान, अजर अमर अव्यय पहिचान।
देखन योग्य स्वयं में देख, विलसे उर आनन्द विशेष ॥ ॐ ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थजिनबिम्बेभ्यःअनर्घ्यपदप्राप्तये जयमाला अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। दोहा - धन्य हुआ कृतकृत्य हुआ, पाया श्री जिनधर्म। मर्म तत्त्व का प्राप्त कर, लहूँ सहज शिवशर्म॥
॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि ॥ श्री वीरशासन जयन्ती पूजन
(छन्द-रोला) वीरनाथ का दर्शन, सबको मंगलकारी। वीरनाथ का शासन, सबको आनन्दकारी॥ सहज वस्तु स्वातन्त्र्य, वीर ने हमें बताया।
स्वयं मुक्त हो, हमें मुक्ति का मार्ग दिखाया। दोहा - श्रावण वदी सुप्रतिपदा, खिरी दिव्यध्वनि वीर।
भाव सहित पूजा करें, पहुँचें भव के तीर । ॐ ह्रीं श्री सन्मति-वीर जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् इति सन्निधिकरणम्।
(तर्ज-आज अद्भुत छवि निज निहारी...) भाव सम्यक्त्वमय नीर लावें, जन्म मरणादि का दुःख नशावें।
वीर शासन जयन्ती मनावें, वीर को पूज निजपद को ध्यावें।। ॐ ह्रीं श्री सन्मतिवीरजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।
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