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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
आरम्भ परिग्रह पाप मूल, निग्रंथ होय छोड़े समूल। आनन्द वीर रस रह्यो छाय, तड़ तड़ तड़ विधि बंधन नशाय ।। ध्याऊँ स्वरूप श्रेणी चढ़ाय, निर्मुक्त परम पद सहज पाय। ऐसी महिमा मन में सुभाय, पूर्जे रत्नत्रय मुक्तिदाय ।।
(घत्ता) रत्नत्रय रूपं आत्मस्वरूपं मंगलमय मंगलकारी।
साक्षात् सु पाऊँ थिर हो जाऊँ, निजपद पाऊँ अविकारी॥ ॐह्रीं श्री सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यक्चारित्र धर्माय अनर्घ्यपदप्राप्तये समुच्चय जयमाला महाअयं नि. स्वाहा।
(दोहा) पढ़ें सुनें चिन्हें अहो, पूजें धरि उर चाव। निश्चय शिवपद वे लहें, नाशें सर्व विभाव ।।
।। पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि ।। श्री पंचमेरु पूजन
(सोरठा) पंचमेरु अभिराम, शोभे ढाई द्वीप में। अस्सी श्री जिनधाम, अकृत्रिम अविकार हैं। जिनप्रतिमा सुखकार, इक इक में शत आठ हैं।
होवे जय जयकार, भाव सहित पूजा करूँ।। ॐ ह्रीं श्री पंचमेरुसम्बन्धि अशीतिजिनचैत्यालयस्थजिनप्रतिमासमूह ! अत्रावतरावतर संवौषट् । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
(छन्द १२ मात्रा) लेऊँ प्रभु समकित जल, धुल जावे मिथ्यामल।
पंचमेरु असी मंदिर, जिनबिम्ब जजू सुखकर ।। ॐ ह्रीं श्री पंचमेरुसम्बन्धि अशीतिजिनचैत्यालयस्थजिनबिम्बेभ्यः जन्मजरामृत्यु - विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
ले क्षमा भाव चन्दन, कर जिनवर का सुमिरन ।
पंचमेरु असी मंदिर, जिनबिम्ब जघु सुखकर ।। ॐ ह्रीं श्री पंचमेरुसम्बन्धि अशीतिजिनचैत्यालयस्थजिनबिम्बेभ्यः संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
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