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आध्यात्मिक पूजन-1
- विधान संग्रह
दशलाक्षणीक धर्म कल्पवृक्ष से अधिक ।
समतामयी यह धर्म चिन्तामणि से अधिक ॥ दशलाक्षणीक धर्म धरे सहज ही ज्ञाता ।
बिन याचना बिन कामना सब सु:ख प्रदाता ॥ दशलाक्षणीक धर्म क्रोध मान से रहित ।
मंगलमयी यह धर्म माया लोभ से रहित ॥ ये ही सनातन धर्म सत्य रूप है पवित्र ।
संयम स्वरूप अभय रूप भोगों से विरक्त ॥ तप त्याग रूप धर्म ये आनन्द स्वरूप है ।
परिग्रह प्रपंच शून्य, ब्रह्मचर्य रूप है ॥ दशलाक्षणीक धर्म ज्ञानमय स्वभाव है ।
वर्ते निजाश्रय से सहज मेंटे विभाव है | दशलाक्षणीक धर्म मैत्री भाव का सेतु ।
अहिंसामयी यह धर्म विश्व शान्ति का हेतु || आओ भजो यह धर्म तत्त्वज्ञान पूर्वक ।
सब द्वन्द फन्द छोड़कर स्वलक्ष्य पूर्वक ॥ यह धर्म है वस्तु स्वभाव सम्प्रदाय ना ।
यह धर्म है अनादि-निधन भेदभाव ना ॥ निष्काम भाव से सहज यह भावना वर्ते ।
दशलाक्षणीक धर्म नित जयवन्त प्रवर्ते ।। (घत्ता)
दश लक्षण रूपं धर्म अनूपं, धरे परम आनन्द से । दुर्भाव नावे सब सुख पावे, छूटे भव दुख द्वन्द से ॥
ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमादि दशलक्षणधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । दशलक्षण हैं धर्म के, धर्म नहीं दशरूप । मोह क्षोभ बिन धर्म है, सहजहिं साम्य स्वरूप ॥ ॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि ॥
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