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________________ 61 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह श्री रत्नत्रय पूजन (गीतिका) दुखहरण मंगलकरण जग में, रत्नत्रय पहिचानिये। परमार्थ अरु व्यवहार से, दो विधि निरूपण जानिये ।। शुद्धात्म रुचि अनुभूति अरु, आचरण निश्चय रत्नत्रय । व्यवहार है बस निमित्त सहचर, नियत से हो कर्म क्षय ॥ पूजूं परम उल्लास से मैं, दृष्टि अन्तर धारिके। भाऊँ स्वपद की भावना, जग द्वन्द-फंद निवारिके॥ ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयधर्म ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयधर्म ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयधर्म ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । (दोहा) निर्मल सम्यक् नीर ले, मिथ्यामैल विडार । पूर्जे धारूँ भक्ति से, रत्नत्रय अविकार ।। ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयधर्माय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि. स्वाहा। चन्दन ले अनुभूति मय, भव आताप निवार । पूनँ धारूँ भक्ति से, रत्नत्रय अविकार ।। ॐ ह्रीं श्री सभ्यक्रत्नत्रयधर्माय भवातापविनाशनाय चंदनं नि, स्वाहा। अक्षय पद के कारणे, अक्षय प्रभु उर धार । पूर्जे धारूँ भक्ति से, रत्नत्रय अविकार ।। ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयधर्माय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि. स्वाहा । परम ब्रह्म की भावना, निर्विकल्प उर धार । पूर्जे धारूँ भक्ति से, रत्नत्रय अविकार ।। ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयधर्माय कामबाणविनाशनाय पुष्पं नि. स्वाहा । निज रस से ही तृप्त हो, दोष क्षुधादि विड्यर। पूनँ धारूँ भक्ति से, रत्नत्रय अविकार ॥ ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयधर्माय क्षुधारोगविनाशनाय नैवद्यं नि. स्वाहा। परम ज्योति चैतन्यमय, हो जगमग सुखकार। पूर्जे धारूँ भक्ति से, रत्नत्रय अविकार ।। ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयधर्माय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं नि. स्वाहा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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