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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह श्री रत्नत्रय पूजन
(गीतिका) दुखहरण मंगलकरण जग में, रत्नत्रय पहिचानिये। परमार्थ अरु व्यवहार से, दो विधि निरूपण जानिये ।। शुद्धात्म रुचि अनुभूति अरु, आचरण निश्चय रत्नत्रय । व्यवहार है बस निमित्त सहचर, नियत से हो कर्म क्षय ॥ पूजूं परम उल्लास से मैं, दृष्टि अन्तर धारिके।
भाऊँ स्वपद की भावना, जग द्वन्द-फंद निवारिके॥ ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयधर्म ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयधर्म ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयधर्म ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
(दोहा) निर्मल सम्यक् नीर ले, मिथ्यामैल विडार ।
पूर्जे धारूँ भक्ति से, रत्नत्रय अविकार ।। ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयधर्माय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि. स्वाहा।
चन्दन ले अनुभूति मय, भव आताप निवार ।
पूनँ धारूँ भक्ति से, रत्नत्रय अविकार ।। ॐ ह्रीं श्री सभ्यक्रत्नत्रयधर्माय भवातापविनाशनाय चंदनं नि, स्वाहा।
अक्षय पद के कारणे, अक्षय प्रभु उर धार ।
पूर्जे धारूँ भक्ति से, रत्नत्रय अविकार ।। ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयधर्माय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि. स्वाहा ।
परम ब्रह्म की भावना, निर्विकल्प उर धार ।
पूर्जे धारूँ भक्ति से, रत्नत्रय अविकार ।। ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयधर्माय कामबाणविनाशनाय पुष्पं नि. स्वाहा ।
निज रस से ही तृप्त हो, दोष क्षुधादि विड्यर।
पूनँ धारूँ भक्ति से, रत्नत्रय अविकार ॥ ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयधर्माय क्षुधारोगविनाशनाय नैवद्यं नि. स्वाहा।
परम ज्योति चैतन्यमय, हो जगमग सुखकार।
पूर्जे धारूँ भक्ति से, रत्नत्रय अविकार ।। ॐ ह्रीं श्री सम्यक्रत्नत्रयधर्माय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं नि. स्वाहा ।
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