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आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
ध्यावो आतम परम पवित्रा, नाशे आस्रव अति अपवित्रा । निर्लोभी हो पाप नशाय, उत्तम शौच जजों सुखदाय ॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमशौचधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
उत्तम सत्यधर्म परधाना, सत्य समझ बिन नहिं कल्याणा । तीर्थ प्रवर्ते सत्य वचन से, होय प्रतिष्ठा सत्य धर्म से ॥ सत्य धर्म सबको सुखदाई, झूठ दुःखमय दुर्गति दाई | बोलोहित - मित- प्रिय-सत्वयना, अथवा शान्त मौन ही रहना ॥ वस्तु स्वरूप यथार्थ पिछानो, करके स्वानुभूति श्रद्धानो । तज परभाव रमो निज ही में, प्रगटे सत्यधर्म जीवन में || ॐ ह्रीं श्री उत्तमसत्यधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
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अहो अतीन्द्रिय आनन्द आवे, विषयों में नहिं चित्त भ्रमावे | तज प्रमाद सब हिंसा टारी, होओ उत्तमसंयम धारी ॥ करि विचार देखो मन माँहीं, भोगों में सुख किंचित् नाहीं । हस्ति मीन अलि पतंग हिरन सम, विषयों में दुख लहें मूढ़जन ॥ हो विरक्त सब पाप नशावें, धरि संयम ज्ञानी सुख पावें । उत्तम संयम शिवपद दाता, पूजो भावो धारो ज्ञाता ॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमसंयमधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
तप निज में ही हो विश्रान्त, इच्छाएँ हो जावें शान्त । सब ही सुख की इच्छा करें, आत्मबोध बिन सुख नहिं लहें ॥ ज्यों-ज्यों भोग संयोग लहाय, आशा तृष्णा बढ़ती जाय । इच्छा पूरी कबहुँ न होय, करो निरोध सहज तप होय ।। बारह भेद व्यवहार कहाय, निश्चय तप सब कर्म नशाय । अपनी-अपनी शक्ति प्रमान, उत्तम तप धारो बुधिवान ॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमतपोधर्मांगाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
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दुखदायक विभाव सब त्याग, आत्मधर्म में धरि अनुराग । चार प्रकार दान शुभ देय, त्रिविधि पात्र को दे यश लेय ॥
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