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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
(रेखता) सहज प्रासुक सु निर्मल जल, करो प्रक्षाल मिथ्यामल ।
धर्म दशलक्षणी सुखकर, जजों निज माँहिं दृष्टि धर ।। ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमामार्दवार्जवसत्यशौचसंयमतपस्त्यागाकिञ्चन्यब्रह्मचर्येति दशलक्षणधर्माय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
शान्त भावों का ले चन्दन, सहज भवताप निकंदन ।
धर्म दशलक्षणी सुखकर, जजों निज माँहिं दृष्टि धर ।। ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्व. स्वाहा।
अखय पद कारणे अक्षय, आत्म पद का करो आश्रय।
धर्म दशलक्षणी सुखकर, जजों निज माँहिं दृष्टि धर ॥ ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।
सुमन श्रद्धा सजाओ सब काम दुःखमय नशाओ अब ।
धर्म दशलक्षणी सुखकर, जजों निज माँहिं दृष्टि धर ।। ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय कामबाणविध्वंशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
परम सन्तोषमय नैवेद्य, क्षुधादिक का न हो कुछ खेद।
धर्म दशलक्षणी सुखकर, जजों निज माँहिं दृष्टि धर ।। ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
उजारो ज्ञान का दीपक, महातम मोह का नाशक ।
धर्म दशलक्षणी सुखकर, जजों निज माँहिं दृष्टि धर ।। ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय मोहान्धकारविनाशाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
अग्नि शोधक जले तप की, भस्म हो कर्म की प्रकृति।
धर्म दशलक्षणी सुखकर, जजों निज माँहिं दृष्टि धर ।। ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।
नहीं फल पुण्य के चाहो, मोक्षफल भी सहज पाओ।
धर्म दशलक्षणी सुखकर, जजों निज माँहिं दृष्टि धर ।। ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
समर्पित अर्घ्य अविकारी, होओ साक्षात् शिवचारी।
धर्म दशलक्षणी सुखकर, जजों निज माँहिं दृष्टि धर।। ॐ ह्रीं श्री उत्तमक्षमादिदशलक्षणधर्माय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
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