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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
निज रसमय चरु ले आऊँ, दुर्दोष क्षुधादि नशाऊँ।
पूजू भाऊँ सुखकारी, सोलहकारण दुःखहारी॥ ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणेभ्यः क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्व. स्वाहा।
अज्ञान तिमिर क्षयकारी, ले ज्ञानदीप अविकारी।
पूनँ भाऊँ सुखकारी, सोलहकारण दुःखहारी॥ ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणेभ्यो मोहान्धकारविनाशाय दीपं निर्व. स्वाहा।
ध्याऊँ पद पाप निकन्दन, नाशें सब ही विधि बन्धन।
पूनँ भाऊँ सुखकारी, सोलहकारण दुःखहारी॥ ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणेभ्योऽष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
फल भक्तिमयी सु चढ़ाऊँ, निर्वाण महाफल पाऊँ।
पूनँ भाऊँ सुखकारी, सोलहकारण दुःखहारी॥ ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणेभ्य: मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
ले अर्घ्य अनूपम सुखमय, लहूँभावलीनता अक्षय।
पूनँ भाऊँ सुखकारी, सोलहकारण दुःखहारी। ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणेभ्यः अनर्घ्यपदप्राप्तये अयं नि. स्वाहा ।
जयमाला
(सोरठा) इह विधि मंगलकार, पूजा करि आनन्द सौं। सहज स्वरूप विचार, गाऊँ जयमाला सुखद ॥
(त्रोटक) सम्यक् दर्शन निर्दोष होय, शंकादि दोष लागे न कोय। रत्नत्रय प्रति नित विनय रहे, कब पूर्ण होय यह भाव रहे। निर्दोष शील वर्ते अखण्ड, परमार्थ लहूँ हो मोह खण्ड। भाऊँ सु निरन्तर भेदज्ञान, जासों पाऊँ निजपद महान ॥ हो धर्म धर्मफल में उछाह, उपजे न कदाचित् विषय दाह। निजशक्तिसंभारिकरूँसुदान, त्याDविभाव दुखकारि जान॥ शक्ति अनुसार धरूँ विचित्र, इच्छा निरोध जिनतप पवित्र । साधू-समाधि में करि सहाय, मैं भी समाधि लहुँसुक्खदाय॥
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