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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह सोलहकारण पूजन
(वीरछन्द) भवदुःख निवारण सोलहकारण, सहजभाव से नित भाऊँ। आनन्दित हो उत्साहित हो, रत्नत्रय पथ पर मैं धाऊँ। जिन भायीं भावना मंगलमय, उनने तीर्थंकर पद पाया। मैं पूजूं धरि बहुमान हृदय में, धर्म तीर्थ शुभ प्रगटाया।
(दोहा) मैं भी भाऊँ चाव सों, निज अन्तर लौ लाय।
होवे धर्म प्रभावना, तिहुँ जग में सुखदाय ।। ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणानि ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणानि ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणानि ! अत्र मम सन्निहितानि भव भव वषट् ।
(मानव) धरि दर्शविशुद्धि सुखमय, निर्मल जल ले समतामय।
पूनँ भाऊँ सुखकारी, सोलहकारण दुःखहारी।। ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धि-विनयसंपन्नता-शीलव्रतेष्वनतिचाराभीक्ष्ण-ज्ञानोपयोग-संवेगशक्तितस्त्याग-तपः साधुसमाधि-वैयावृत्त्यकरण-अर्हद्भक्ति-आचार्यभक्ति-बहुश्रुत भक्ति-प्रवचनभक्ति-आवश्यकापरिहाणि मार्गप्रभावना-प्रवचनवात्सल्येतितीर्थकरत्व कारणेभ्यो जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
शुभ धैर्यमयी ले चन्दन, जिन चरणों में कर वन्दन।
पूनँ भाऊँ सुखकारी, सोलहकारण दुःखहारी॥ ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणेभ्यः संसारतापविनाशनाय चन्दनं निर्व. स्वाहा ।
निस्तुष ज्ञानाक्षत धारूँ, क्षत् विभव चाह परिहारूँ।
पूनँ भाऊँ सुखकारी, सोलहकारण दुःखहारी॥ ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणेभ्योऽक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।
निष्काम शील प्रगटाकर, भावों के पुष्प चढ़ाकर।
पूनँ भाऊँ सुखकारी, सोलहकारण दुःखहारी॥ ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणेभ्यः कामबाणविध्वंशनाय पुष्पं निर्व. स्वाहा।
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