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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
(बसन्ततिलका) भववास दु:खमय तज निज में बसे जो। निर्मल गुणाकर हुए शिव में बसे जो।। जल सम पवित्र होकर मैं सिद्ध ध्याऊँ।
जन्मादि दोष क्षण में प्रभु सम नशाऊँ ।। ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने जन्म-मरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं नि.।
सम्यक्त्व आदि गुण युत जगपूज्य हैं जो। निरखेद तृप्त निज में अविचल रहें जो। चन्दन समान शीतल हो सिद्ध ध्याऊँ।
संताप रूप भव में फिर ना भ्रमाऊँ। ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने भवातापविनाशनाय चंदनं नि. स्वाहा।
अन्तिम शरीर से जो कुछ न्यून राजें। अशरीर ज्ञानमय जो अक्षय विराजें। ले भाव अक्षत सहज मैं सिद्ध ध्याऊँ।
क्षत् रूप जग विभव अब किञ्चित् न चाहूँ। ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं नि. स्वाहा।
स्वाधीन मग्न निज में निश्चल हुए जो। कामादि दोष नाशे सुखमय हुए जो।। निष्काम भावमय हो मैं सिद्ध ध्याऊँ।
हो ब्रह्मरूप शाश्वत आनन्द पाऊँ ।। ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं नि. स्वाहा।
हे आत्मनिष्ठ योगीश्वर ध्यान गम्य । प्रभुवर करूँ सुभक्ति वाणी अगम्य ।। निज में ही तृप्त हो प्रभु पूजा रचाऊँ।
दुखमय क्षुधादि नाशें प्रभुता सु पाऊँ ।। ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं नि. स्वाहा ।
हे चित्प्रकाशमय परमेश्वर अलौकिक। निज में निमग्न रहते तिहुँ जग के ज्ञायक ॥
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