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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह रहे देह में फिर भी न्यारा, अन्तर माँहिं विदेही नाथ। सहज स्मरण हो आता है, तुम्हें पूजते हे जिननाथ ।। यद्यपि आप दूरवर्ती हैं, किन्तु भाव में सदा समीप। ज्ञान माँहिं प्रत्यक्ष वत् निर, जले स्वयं अन्तर का दीप। निर्मम हुआ शान्त चित प्रभुवर, परम प्रभू का ध्यान रहे। निर्मल साम्यभाव की धारा, सहजपने सुखकार बहे ।। हो निग्रंथ निमग्न रहूँ नित, सर्व विभाव नशाऊँगा। हुआ सहज विश्वास शीघ्र ही, तुम सम ही हो जाऊँगा।
(त्रिभंगी) जय-जय सीमंधर, तिहुँजग सुखकर, नृप श्रेयांससुत अविकारी।
सत्यदेवी नन्दन, करते वन्दन, वृषभ चिन्ह मंगलकारी॥ ॐ ह्रीं श्री सीमंधरजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालायँ नि. स्वाहा।
(दोहा) सीमंधर भगवान को, जो पूजें चित धार । निज सीमा पहिचानकर, सहज लहे भवपार ।।
॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि ॥ श्री सिद्ध पूजन
(दोहा) सर्व कर्म बन्धन रहित, नित्य निरामय जान । परम सूक्ष्म सिद्धात्मा, चित्स्वरूप पहिचान ।। पूजूं भक्ति भाव से, धरूँ भेद विज्ञान ।
निश्चय से मैं भी अहो, शाश्वत सिद्ध समान ।। ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपते सिद्धपरमेष्ठिन् ! अत्र अवतर अवतर ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपते सिद्धपरमेष्ठिन् ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपते सिद्धपरमेष्ठिन् !अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्
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