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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह । जड़ फल लख निस्सार जिनेश्वर, सन्मुख आज चढ़ाता हूँ॥विद्यमान।। ॐ ह्रीं श्री सीमंधरजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
हे अनर्घ्य पद दाता ! ज्ञाता-दृष्टा रह निजपद ध्याऊँ। निश्चय ही तुम सम हे स्वामी, ध्रुव अनर्घ्य जिनपद पाऊँ।
द्रव्य-भावमय अर्घ्य जिनेश्वर, सन्मुख आज चढ़ाता हूँ॥विद्यमान।। ॐ ह्रीं श्री सीमंधरजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अयं नि. स्वाहा।
जयमाला
(दोहा) गुण अनन्त मंगलमयी, कैसे करूँ बखान। भक्तिवश बाचाल हो, करूँ अल्प गुणगान ।।
(वीरछन्द) समवशरण में नाथ विराजे, चतुर्मुखी अन्तर्मुख हो। भक्ति उर में सहज उमड़ती, जब परिणति प्रभु सन्मुख हो। आगम से प्रभु महिमा सुन, प्रत्यक्ष लखू ऐसा मन हो। जिनवर तुम ही प्राण हमारे, तुम ही तो जीवनधन हो। धर्म-तीर्थ के परम प्रणेता, धर्म-पिता सर्वज्ञ महान। अष्टादश दोषों से न्यारे, तिहुँ जग भूषण हे भगवान ।। दिव्यध्वनि से वर्षाते प्रभु, धर्मामृत परमानन्ददाय । जिसको पीते-पीते स्वामी, जन्म-जरा-मृत रोग नशाय ।। अहो अलौकिक वस्तुस्वरूप, दिखाया प्रभुवर नित अविकार। हेय-रूप पर-भाव बताये, उपादेय शुद्धातम सार ।। अन्य न कोई दुख का कारण, भूल स्वयं को है हैरान । इसीलिए प्रभु कहा आपने, श्रेय मूल है सम्यग्ज्ञान ।। निज अक्षय प्रभुता दर्शायी, किया अनन्त परम उपकार । हो निर्ग्रन्थ आत्मपद साधू निश्चय होऊँ भव से पार ।।
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