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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह निजानन्द का वेदन करते, भवाताप उत्पन्न न हो। वर्ते निज में तृप्त परिणति, कर्मोदय से खिन्न न हो। चन्दन लख निस्सार जिनेश्वर सन्मुख आज चढ़ाता हूँ। विद्यमान सीमंधर स्वामी ! आत्म भावना भाता हूँ। ॐ ह्रीं श्री सीमन्धरजिनेन्द्राय संसारतापविनाशनाय चन्दनम् नि.स्वाहा।
अक्षय तो अपना ही वैभव, अक्षय तो अपना पद है। अक्षय तो अपनी ही प्रभुता, पर का तो झूठा मद है।।
क्षत् भावों को त्याग जिनेश्वर अक्षत आज चढ़ाता हूँ॥विद्यमान।। ॐ ह्रीं श्री सीमंधर जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतम् नि. स्वाहा।
काम वेदना का उपाय तो, ब्रह्मचर्य का धारण है। परम ब्रह्म की सहज साधना, ब्रह्मचर्य का साधन है।
पुष्पों को निस्सार जान प्रभु सन्मुख आज चढ़ाता हूँ।विद्यमान।। ॐ ह्रीं श्री सीमंधरजिनेन्द्राय कामबाण विध्वंशनाय पुष्पम् नि. स्वाहा।
क्षुधा वेदना नहिं उपजावे, ज्ञानामृत से तृप्त रहे। भोजन बिन ही अहो जिनेश्वर, सुखमय आप विराज रहे ।।
ये नैवेद्य असार जानकर, सन्मुख आज चढ़ाता हूँ॥विद्यमान।। ॐ ह्रीं श्री सीमंधरजिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यम् नि. स्वाहा।
ज्ञानोद्योत रहे अन्तर में, वस्तु स्वरूप झलकता है। सहज प्रवर्ते भेदज्ञान प्रभु, महामोहतम नशता है।
जड़ दीपक निस्सार जानकर, सन्मुख आज चढ़ाता हूँ।विद्यमान।। ॐ ह्रीं श्री सीमंधरजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशनाय दीपम् नि. स्वाहा।
अहो ! अगन्ध आत्मा जाना, धर्म सुगन्धि प्रगट हुई। घ्राणेन्द्रिय का विषय दुःखमय, बाह्य गन्ध से विरति हुई ।।
धूप जान निस्सार जिनेश्वर, सन्मुख आज चढ़ाता हूँ॥विद्यमान।। ॐ ह्रीं श्री सीमंधरजिनेन्द्राय अष्टकर्म दहनाय धूपम् नि. स्वाहा।
कर्म फलों से हुई उदासी, मोक्ष महाफल पाऊँगा। हे जिन स्वामी ! अन्तर्मुख हो निज पुरुषार्थ बढ़ाऊँगा।।
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