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________________ 51 निर्मोह ज्ञानमय हो मैं सिद्ध ध्याऊँ 1 ज्ञायक स्वरूप सहजहिं ज्ञायक रहाऊँ ॥ आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने मोहान्धकार- विनाशनाय दीपं नि. स्वाहा । ध्रुव ध्येय रूप शुद्धातम सुखकारी । भारी ॥ दर्शाय देव कीना उपकार हो मग्न ध्येय माँहीं पूजा दुष्टाष्ट कर्म बन्धन सहजहिं नशाऊँ ॥ रचाऊँ । ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने अष्टकर्म - दहनाय धूपं नि. स्वाहा । अक्षय अनंत अविकारी मुक्तिनाथ । वाँछा न शेष पाया चैतन्य नाथ ॥ आनन्द विभोर हो प्रभु पूजा रचाऊँ । अनुपम अचल सुशाश्वत गति शीघ्र पाऊँ ।। ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने मोक्षफल प्राप्तये फलं नि. स्वाहा । त्रैलोक्य चूड़ामणि प्रभुवर हुए हैं। साक्षात् शुद्ध आत्मा विभु आप ही हैं ।। भावार्घ्य लेय सुखमय पूजा रचाऊँ । अविचल अनर्घ अविनाशी प्रभुता सु पाऊँ ।। ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्यं नि. स्वाहा । जयमाला (दोहा) Jain Education International अविकल परमानन्दमय, अविनाशी गुणखान । भक्ति भाव पूरित हृदय, सहज करूँ गुणगान ॥ (चौपाई) स्वयं सिद्ध परमातम ध्याया, कर्म कलंक समूल नशाया। प्रगटे गुण अनन्त अविकारी, जजूँ सिद्ध नित मंगलकारी ॥ जय जय क्षायिक सम्यक्दर्शन, केवलज्ञान सु केवलदर्शन । हुए अनन्त सु वीरजधारी, जजूँ सिद्ध नित मंगलकारी ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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