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निर्मोह ज्ञानमय हो मैं सिद्ध ध्याऊँ
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ज्ञायक स्वरूप सहजहिं ज्ञायक रहाऊँ ॥
आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने मोहान्धकार- विनाशनाय दीपं नि. स्वाहा । ध्रुव ध्येय रूप शुद्धातम सुखकारी ।
भारी ॥
दर्शाय देव कीना उपकार हो मग्न ध्येय माँहीं पूजा दुष्टाष्ट कर्म बन्धन सहजहिं नशाऊँ ॥
रचाऊँ ।
ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने अष्टकर्म - दहनाय धूपं नि. स्वाहा । अक्षय अनंत अविकारी मुक्तिनाथ । वाँछा न शेष पाया चैतन्य नाथ ॥ आनन्द विभोर हो प्रभु पूजा रचाऊँ ।
अनुपम अचल सुशाश्वत गति शीघ्र पाऊँ ।।
ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने मोक्षफल प्राप्तये फलं नि. स्वाहा । त्रैलोक्य चूड़ामणि प्रभुवर हुए हैं। साक्षात् शुद्ध आत्मा विभु आप ही हैं ।। भावार्घ्य लेय सुखमय पूजा रचाऊँ ।
अविचल अनर्घ अविनाशी प्रभुता सु पाऊँ ।।
ॐ ह्रीं श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्यं नि. स्वाहा ।
जयमाला
(दोहा)
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अविकल परमानन्दमय, अविनाशी गुणखान । भक्ति भाव पूरित हृदय, सहज करूँ गुणगान ॥ (चौपाई) स्वयं सिद्ध परमातम ध्याया, कर्म कलंक समूल नशाया। प्रगटे गुण अनन्त अविकारी, जजूँ सिद्ध नित मंगलकारी ॥ जय जय क्षायिक सम्यक्दर्शन, केवलज्ञान सु केवलदर्शन । हुए अनन्त सु वीरजधारी, जजूँ सिद्ध नित मंगलकारी ॥
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