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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह नित्यमुक्त निर्ग्रन्थ ज्ञान-आनन्दमयी शुद्धातम।
अखिल विश्व में ध्येय एक ही, निज शाश्वत परमातम ।। निजानन्द ही भोग नित्य, अविनाशी वैभव अपना। सारभूत है, व्यर्थ ही मोही, देखे झूठा सपना । यों ही चिन्तन चले हृदय में, आप वर्तते ज्ञाता। क्षण-क्षण बढ़ती भाव-विशुद्धि, उपशमरस छलकाता।। एक वर्ष छद्मस्थ रहे प्रभु, हुआ न श्रेणी रोहण। चक्री शीश नवाया तत्क्षण, हुआ सहज आरोहण ॥ नष्ट हुआ अवशेष राग भी, केवल-लक्ष्मी पाई। अहो अलौकिक प्रभुता निज, की सब जग को दरशाई॥ हुए अयोगी अल्प समय में, शेष कर्म विनशाए। ऋषभदेव से पहले ही प्रभु, सिद्ध शिला तिष्ठाए ।
आप समान आत्मदृष्टि धर, हम अपना पद पावें।
भाव नमन कर प्रभु चरणों में, आवागमन मिटावें ।। ॐ ह्रीं श्री बाहुबलिजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमाला पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा।
(सोरठा) बाहुबली भगवान, दर्शाया जग स्वार्थमय । जागे आतमज्ञान, शिवानन्द मैं भी लहूँ।
॥पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि ॥
जिस महान कार्य के लिए तू जन्मा है, उस महान कार्य का
अनुप्रेक्षण कर और कार्य सिद्धि करके चला जा।
जिस जीवन में क्षणिकता है, उस जीवन में ज्ञानियों ने नित्यता
प्राप्त की है, यह आश्चर्यमिश्रित आनन्द की बात है।
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