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________________ आध्यात्मिक - विधान संग्रह पूजन अनर्घ्य प्रभुता आपकी सु आप में निहारिके, नाथ भाव माँहिं मैं, अनर्घ्य अर्घ्य धारिके ॥ बाहुबलि जिनेन्द्र भक्ति से करूँ सु अर्चना, तृप्त स्वयं में ही रहूँ अन्य हो विकल्प ना ॥ ॐ ह्रीं श्री बाहुबलिजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । जयमाला दोहा - मोहजयी इन्द्रियजयी, कर्मजयी जिनराज । भावसहित गुण गावहुँ, भाव विशुद्धि काज ॥ (जोगीरासा) अहो बाहुबलि स्वामी पाऊँ, सहज आत्मबल ऐसा । निर्मम होकर साधूं निजपद, नाथ आप ही जैसा ।। धन्य सुनन्दा के नन्दन प्रभु, स्वाभिमान उर धारा । चक्री को नहिं शीस झुकाया, यद्यपि अग्रज प्यारा ॥ कर्मोदय की अद्भुत लीला, युद्ध प्रसंग पसारा । युद्ध क्षेत्र में ही विरक्त हो, तुम वैराग्य विचारा ॥ " कामदेव होकर भी प्रभु निष्काम तत्त्व आराधा । प्रचुर विभव, रमणीय भोग भी, कर न सके कुछ बाधा ॥ विस्मय से सब रहे देखते, क्षमा भाव उर धारे । जिनदीक्षा ले शिवपद पाने, वन में आप पधारे ॥ वस्त्राभूषण त्यागे लख निस्सार, हुए अविकारी । केशलौंच कर आत्म-मग्न हो, सहज साधुव्रत धारी ॥ हुए आत्म-योगीश्वर अद्भुत, आसन अचल लगाया । नहिं आहार-विहार सम्बन्धी, कुछ विकल्प उपजाया ॥ चरणों में बन गई वाँमि, चढ़ गई सु तन पर बेलें । तदपि मुनीश्वर आनन्दित हो, मुक्तिमार्ग में खेलें ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only 42 www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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