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आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
(पद्धरि)
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थी ।
भये ।
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जय वासुपूज्य देवाधिदेव, मंगलमय मंगलकरन एव । जय चिदानन्द चिद्रूप सार, धारी निज महिमा निर्विकार । पूरवभव में तुमने स्वामी, सुन युगमंधर प्रभु की वाणी । नित आत्मभावना भाई थी, तीर्थंकर प्रकृति बंधाई तप कर महाशुक्र विमान गये, चय नृप वसुपूज्य के पुत्र कल्याणक देव मनाये थे, पर निज में आप समाये थे भोगों को नहिं स्वीकार किया, दूरहि से प्रभुवर छोड़ दिया । हो बालयति दीक्षा धारी, प्रकटाया निजपद सुखकारी । कर रहा अर्चना मल्लिनाथ, भवि दर्शन कर होते सनाथ । वट वृक्ष विशाल गिरा लख कर, पूरब भव में दीक्षा धरकर । तीर्थंकर पद का बन्ध किया, अपराजित स्वर्ग प्रयाण किया । तँहतैं चयकर अवतार लिया, शादी के समय वैराग लिया । छह दिन छद्मस्थ रहे स्वामी, नव - केवललब्धि रमा पायी । भव्यों को शिवपथ दर्शाया, सम्मेदशिखर से शिव पाया । जय नेमीश्वर महिमा महान, सुन पशु क्रन्दन वैराग्य ठान । छोड़े पशु अरु राजुल छोड़ी, भवबन्धन की कड़ियाँ तोड़ी । जग को अनुपम आदर्श दिया, प्रभु धर्म अहिंसा प्रकट किया। गिरनार शिखर से शिव पाया, प्रभु चरणों में हम सिर नाया। जय पार्श्वनाथ तव गुण अपार, गणधर भी पावें नहीं पार | इक दिवस सभा में विराज रहे, साकेत नरेश की भेंट लिए ।
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इक दूत वहाँ पर आया था, साकेत विभव दरशाया था। ऋषभादि प्रभु स्मरण हुआ, वैराग्य हृदय में जाग उठा । दीक्षा ले निज में मग्न हुए, तब कमठ घोर उपसर्ग किए। अप्रभावित अचल रहे जिनवर, परमात्मदशा प्रगटी सत्वर । ऐसी स्थिरता प्रभु पाऊँ, बस परमब्रह्म में रम जाऊँ ।
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