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आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
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हे महावीर विभु परम धीर, महिमा सागर से भी गम्भीर । शादी प्रसंग जब आया था, प्रभुवर तुमने ठुकराया था । दीक्षा ले द्वादश वर्ष प्रभो, दुर्द्धर तप धारा आप विभो । निजध्यान अग्नि द्वारा जिनेश, कर्मों को ध्वस्त किया अशेष । अन्तिम तीर्थंकर अभिरामी, मैं करूँ वन्दना जगनामी । तव दर्शन करके हे स्वामी, मैंने निज महिमा पहिचानी | प्रभु प्रबल पराक्रम प्रगटाऊँ, रागादिभाव पर जय पाऊँ । जो तीर्थ आपने प्रगटाया, वह भी स्वामी मुझको भाया । कीचड़ लपेट तन धोना क्या, अरु कूद अग्नि में रोना क्या ? | श्रद्धान परम जागा मन में, सुख शांति सदा है अन्तर में । परमाणु मात्र भी नहीं पर में, मेरा सर्वस्व सदा मुझ में । उपयोग नहीं पर में भागे, अतिचार नहीं किञ्चित् लागे । प्रभुवर ! निज में ही रम जाऊँ, निज परम ब्रह्मचर्य प्रगटाऊँ । ॐ ह्रीं श्रीपंचबालयति - तीर्थंकरेभ्यो ऽनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालाऽर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । परम ब्रह्म आनन्दमय, चित् स्वभाव अविकार | समयसार में लीन हो, होऊँ भव से पार ॥
॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि ॥
श्री बाहुबली जिनपूजन (हरिगीतिका)
हे बाहुबलि ! अद्भुत अलौकिक, ध्यानमुद्रा राजती । प्रत्यक्ष दिखती आत्मप्रभुता, शीलमहिमा जागती । तुम भक्तिवश वाचाल हो गुणगान प्रभुवर मैं करूँ । निरपेक्ष हो पर से सहज पूजूँ स्वपद दृष्टि धरूँ ॥
ॐ ह्रीं श्री बाहुबलिजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् इत्याह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्री बाहुबलिजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री बाहुबलिजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् ।
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