________________
35
आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
(जोगीरासा)
शांति जिनेश्वर दर्शन कर, निज शान्त स्वरूप लखाया। धन्य परम उपकारी निज सुख, निज में मुझे दिखाया ॥टेक॥
चाह दाह में भटका अब तक, सुख का लेश न पाया। मंद कषायों द्वारा अंतिम, ग्रीवक तक हो आया ॥ काललब्धि जागी प्रभुवर, मैं पास आपके आया॥धन्य ॥ आत्मा तो स्वभाव से सुखमय, दिव्य रहस्य बताया। दीन दुखी पामर मैं हूँ, ये भ्रम का रोग मिटाया ।। अन्तर में प्रत्यक्ष देख सुख, अब विश्वास जगाया ॥धन्य ॥ निज चैतन्य विभूती देखी, शक्ति अनन्त निहारी ।
प्रभु सम प्रभुता लखकर, खुद ही भाव हुए अविकारी ॥ होना नहीं सदा हूँ सुखमय, सम्यक् ज्ञान उपाया॥धन्य ॥ अब तो यही भावना प्रभुवर, निज में ही रम जाऊँ । स्वानुभूतिमय परणति में ही, काल अनन्त बिताऊँ ॥ निज में ही सन्तुष्ट, कामनाओं का हुआ सफाया ॥धन्य ॥ कुन्थुनाथ स्तुति करते, गणधर इन्द्रादिक हारे । तुम महिमा वर्णन करने में, हम को मंद विचारे ॥ निजस्वभाव साधन द्वारा ही, प्रभु मुक्ति पद पाया ॥धन्य ॥ कुन्थु आदि सूक्ष्म जीवों के, प्रति भी दया सिखाई । परम अहिंसामयी धर्म की, ध्वजा प्रभो ! फहराई ॥ चलूँ आपके पद चिन्हों पर, आज यही मन भाया॥धन्य ॥ धर्म चक्र के अर स्वरूप, सार्थक प्रभु नाम तुम्हारा । प्रभो आपका दर्शन पाकर, जागा भाग्य हमारा ॥ भव का फेरा मिटा सहज ही, शिवपथ मैंने पाया ॥ धन्य. ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org