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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
संताप रहित निज भाव, निज में दरशाया। भव ताप नशावन हेतु, चन्दन सम पाया। हे शांति-कुन्थु-अरनाथ, चरणन शिर नाऊँ।
है महामहिम निजभाव, प्रभुता प्रगटाऊँ। ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्रेभ्यो भवातापविनाशनाय चन्दनं..।
शाश्वत अक्षत निजभाव, दृष्टि में आया।
क्षत् रागादिक विनशाय, अक्षयपद ध्याया॥ हे शांति.॥ ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्रेभ्योऽक्षयपद प्राप्तये अक्षतं नि. स्वाहा।
निष्काम रूप लख देव, काम पलाया है।
सम्यक् श्रद्धा का पुष्प, आज चढ़ाया है॥ हे शांति.॥ ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्रेभ्यः कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि.।
दर्शन कर निज में नाथ, तृप्ति पाई है।
भव-भव की क्षुधा जिनेश, आज नशायी है। हे शांति.॥ ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्रेभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि.।
तिहुंजग का जाननहार, आज जनाया है।
आलोकित है निज लोक, मोह भगाया है। हे शांति.॥ ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्रेभ्यो मोहांधकारविनाशनाय दीपं नि.।
प्रभु आत्मध्यान की अग्नि, अब सुलगाई है।
पर-परणति की दुर्गन्ध सर्व जलाई है।। हे शांति.॥ ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्रेभ्योऽअष्टकर्मदहनाय धूपंनि. स्वाहा।
फल की अभिलाषा नाहिं, निजपद पाया है।
पूर्णत्व स्वयं में देख, आनन्द छाया है। हे शांति.॥ ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्रेभ्यो मोक्षफल प्राप्तये फलं नि. स्वाहा।
प्रभु वीतराग विज्ञान-मय शुभ अर्घ लिया।
निज में अनर्घ पद नाथ, निज से प्राप्त किया।। हे शांति.॥ ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्रेभ्योऽनर्घ्यपद प्राप्तये अयं नि. स्वाहा।
जयमाला दोहा- जग जड़ वैभव त्यागकर, निज वैभव प्रगटाय।
शांति-कुन्थु-अरनाथ की, नित जयमाला गाय ।।
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