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________________ 34 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह संताप रहित निज भाव, निज में दरशाया। भव ताप नशावन हेतु, चन्दन सम पाया। हे शांति-कुन्थु-अरनाथ, चरणन शिर नाऊँ। है महामहिम निजभाव, प्रभुता प्रगटाऊँ। ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्रेभ्यो भवातापविनाशनाय चन्दनं..। शाश्वत अक्षत निजभाव, दृष्टि में आया। क्षत् रागादिक विनशाय, अक्षयपद ध्याया॥ हे शांति.॥ ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्रेभ्योऽक्षयपद प्राप्तये अक्षतं नि. स्वाहा। निष्काम रूप लख देव, काम पलाया है। सम्यक् श्रद्धा का पुष्प, आज चढ़ाया है॥ हे शांति.॥ ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्रेभ्यः कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि.। दर्शन कर निज में नाथ, तृप्ति पाई है। भव-भव की क्षुधा जिनेश, आज नशायी है। हे शांति.॥ ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्रेभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं नि.। तिहुंजग का जाननहार, आज जनाया है। आलोकित है निज लोक, मोह भगाया है। हे शांति.॥ ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्रेभ्यो मोहांधकारविनाशनाय दीपं नि.। प्रभु आत्मध्यान की अग्नि, अब सुलगाई है। पर-परणति की दुर्गन्ध सर्व जलाई है।। हे शांति.॥ ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्रेभ्योऽअष्टकर्मदहनाय धूपंनि. स्वाहा। फल की अभिलाषा नाहिं, निजपद पाया है। पूर्णत्व स्वयं में देख, आनन्द छाया है। हे शांति.॥ ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्रेभ्यो मोक्षफल प्राप्तये फलं नि. स्वाहा। प्रभु वीतराग विज्ञान-मय शुभ अर्घ लिया। निज में अनर्घ पद नाथ, निज से प्राप्त किया।। हे शांति.॥ ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्रेभ्योऽनर्घ्यपद प्राप्तये अयं नि. स्वाहा। जयमाला दोहा- जग जड़ वैभव त्यागकर, निज वैभव प्रगटाय। शांति-कुन्थु-अरनाथ की, नित जयमाला गाय ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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