SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 33 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह सर्वांग सुखमय स्वयं सिद्ध निर्मल। शक्ति अनन्तोमयी एक अविचल ॥ बिन्मूर्ति चिन्मूर्ति भगवान आत्मा। तिहूँ जग में नमनीय शाश्वत चिदात्मा ।। हो अद्वैत वन्दन प्रभो हर्ष छाया। तिहूँ लोक में नाथ अनुपम जताया ॥६॥ ॐ ह्रीं श्री वीतरागदेवाय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमाला अर्घ्य नि. स्वाहा । दोहा- आपहि ज्ञायक देव है, आप आपका ज्ञेय । अखिल विश्व में आप ही, ध्येय ज्ञेय श्रद्धेय ।। ॥पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि॥ श्री शांति-कुन्थु-अरनाथ जिनपूजन (वीर-छन्द) हो चक्रवर्ति अरु कामदेव, प्रभु तीर्थंकर पदवी धारी। हे शांति-कुन्थु-अरनाथ ! सदा, मैं करूँ वंदना अविकारी। आकर आप समीप जिनेश्वर, आनन्द उर न समाया है। तव दर्शन पाकर नाथ आज, निजदर्शन मैंने पाया है। ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्राः ! अत्र अवतरन्तु अवतरन्तु संवौषट् इत्याह्वननम् । ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्राः ! अत्र तिष्ठन्तु तिष्ठन्तु ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री शांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्राः! अत्र मम सन्निहिता भवन्तु भवन्तु वषट् सन्निधिकरणम्। (अवतार छन्द) मिथ्यामल धोने आज, सम्यक् जल पाया। प्रभु जन्म-जरा-मृत्यु शून्य, ज्ञायक दिखलाया। हे शांति-कुन्थु-अरनाथ, चरणन शिर नाऊँ। है महामहिम निजभाव, प्रभुता प्रगटाऊँ ।। ॐ ह्रीं श्रीशांतिनाथ-कुन्थुनाथ-अरनाथ-जिनेन्द्रेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं..। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy