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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
तुम नाम मंत्र है मंगलमय, हे कर्ममुक्त ! तुम मंगलमय । सम्यक्त्व आदि गुण युक्त सिद्ध मैं नमन करूँ हे मंगलमय ॥ हों दुःख सभी तत्क्षण विनष्ट, प्रभु नाम मात्र है मंगलमय । डाकिनि, भूत पिशाच, नागगद सभी दूर हों हे शिवमय ।।
॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि॥
जिनसहस्रनाम अर्घ्य गुण अनन्त हैं प्रभो आपके, मेरी है सामर्थ्य कहाँ। सहस्रनाम से अर्चन करके, अर्घ्य चढ़ाऊँ आज यहाँ ॥ ॐह्रीं भगवज्जिनस्याऽष्टाधिकसहस्रनामेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा।
पूजा प्रतिज्ञा पाठ
(तर्ज-इन्साफ की डगर पे...) जो तीन लोक स्वामी मुक्ति रमापति हैं। हैं स्याद्वाद नायक, सानन्त चार जो हैं॥
कर वन्दना उन्हीं की, पूजा विधि करूँगा।
जो भव्य प्राणियों को, हैं पुण्य बन्ध हेतु ॥ निज आत्मरूप महिमा, जिनने प्रकट दिखाई। ऐसे त्रिलोक गुरु-पुंगव, नित्य स्वस्ति दायक ।।
उन पूर्ण ज्ञान दर्शन आनन्द वीर्य वैभव ।
दें प्रेरणा सतत, वे गुरु मुक्ति हेतु मुझको। मैं द्रव्यद्रष्टि से हूँ परिपूर्ण शुद्ध सुखमय। पर्याय शुद्धि हेतु, अवलम्ब मैंने लीना ।।।
बहु युक्तियों से अब तो, रागादि कर विनष्ट।
भूतार्थ यज्ञ द्वारा, मैं भी प्रभु बनूँगा। अर्हत् पुराण पुरुषोत्तम, हे जगत हितंकर। सब वस्तुयें तनँगा, निज पूर्ण ज्ञान हेतु॥
नित पुण्य-पाप द्वारा परिणति हुई विकारी। मैं पाप तो तजा है, अब पुण्य भी तगूंगा।
॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि॥
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