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आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
श्री ऋषभ अजित सम्भव अभिनन्दन सुमति सुमतिप्रदायक हैं। श्री पद्मप्रभ अरु श्रीसुपार्श्व, चन्द्रप्रभ स्वस्ति दायक हैं | श्री पुष्पदंत शीतल श्रेयांस, श्री वासुपूज्य और विमल प्रभु । श्री अनन्त धर्म और शान्ति कुंथु, मंगलमय मुक्ति विधायक हैं ।। अरनाथ मल्लि मुनिसुव्रतजी, नमिनाथ नेमि अरु पार्श्वप्रभु । श्री वर्द्धमान जिन सुखवर्द्धक, निज पर विवेक प्रगटायक हैं । इन सम ही जड़ वैभव तजकर, सम्यक्त्व इच्छामुक्त बनें। निज का पुरुषार्थ मूल कारण, ये ही व्यवहार सहायक हैं ॥ हो जिनवाणी अभ्यास सदा, तत्त्वों का सम्यक् निर्णय हो । रागादि विकारी भाव भगें, जिनवाणी स्वस्ति दायक हो ॥ द्रव्यानुयोग चरणानुयोग से, सत् श्रद्धा चारित्र धरें । प्रथमानुयोग, करणानुयोग, दृग-ज्ञान-वृत्ति दृढ़ स्वच्छ करें ॥ हैं बुद्धि ऋद्धियाँ प्रकट जिन्हें, पर लक्ष्य नहीं उन पर जिनका । तप घोर करें आकाश चलें, है पार नहीं जिनके बल का || मन-वाँछित रूप बना सकते, भारी हल्का, लम्बा छोटा । जो सर्वौषधियों की निधि हैं, ऋद्धि अक्षीण से ना टोटा || पर नहीं प्रयोग करें इनका निजख्याति लाभ पूजा हेतु । उन सम जड़ वैभव ठुकराऊँ, तब होवें वे मुक्ति सेतु ॥ ॥ पुष्पाञ्जलिं क्षिपामि ॥
जिनेन्द्र-अभिषेक स्तुति : पं. राजमलजी पवैया
मैंने प्रभु जी के चरण पखारे । जनम जनम के संचित पातक तत्क्षण ही निरवारे ॥ १ ॥ प्रासुक जल के कलश श्री जिनप्रतिमा ऊपर ढारे । वीतराग अरिहंत देव के गूंजे जय-जयकारे ॥२॥ चरणाम्बुज स्पर्श करत ही छाये हर्ष अपारे! पावन तन-मन-नयन भये सब दूर भये अंधियारे ॥ ३ ॥
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