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________________ आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह वनवासी सन्तों को नित.... वनवासी सन्तों को नित ही, अगणित बार नमन हो। द्रव्य-नमन हो भाव-नमन हो, अरु परमार्थ-नमन हो ।।टेक।। गृहस्थ अवस्था से मुख मोड़ा, सब आरम्भ परिग्रह छोड़ा। ज्ञान ध्यान तप लीन मुनीश्वर, अगणित बार नमन हो॥१॥ जग विषयों से रहे उदासी, तोड़ी जिनने आशा पाशी। ज्ञानानंद विलासी गुरुवर, अगणित बार नमन हो ॥२॥ अहंकार ममकार न लावें, अंतरंग में निज पद ध्यावें। सहज परम निर्ग्रन्थ दिगम्बर, अगणित बार नमन हो ॥३॥ ख्यातिलाभ की नहिं अभिलाषा, सारभूत शुद्धातम भासा। आतमलीन विरक्त देह से, अगणित बार नमन हो॥४॥ उपसर्गों में नहिं अकुलावें, परीषहों से नहीं चिगावें। सहज शान्त समता के धारक, अगणित बार नमन हो॥५॥ जिनशासन का मर्म बतावें, शाश्वतसुख का मार्ग दिखावें। अहो-अहो जिनवर से मुनिवर, अगणित बार नमन हो ॥६॥ ऐसा ही पुरुषार्थ जगावें, धनि निर्ग्रन्थ दशा प्रगटावें। समय-समय निर्ग्रन्थ रूप का, सहजपने सुमिरन हो।।७।। . गुरु निर्ग्रन्थ परिग्रह.... गुरु निर्ग्रन्थ परिग्रह त्यागी, भव-तन-भोगों से वैरागी। आशा पाशी जिनने छेदी, आनंदमय समता रस वेदी॥१॥ ज्ञान-ध्यान-तप लीन रहावें, ऐसे गुरुवर मोकों भावें। हरष-हरष उनके गुण गाऊँ, साक्षात् दर्शन मैं पाऊँ॥२॥ उनके चरणों शीश नवाकर, ज्ञानमयी वैराग्य बढ़ाकर। उनके ढिंग ही दीक्षा धारूँ, अपना पंचमभाव संभारूँ॥३॥ सकलप्रपंच रहित हो निर्भय, साधू आतमप्रभुता अक्षय। ध्यान अग्नि में कर्म जलाऊँ, दुखमय आवागमन नशाऊँ॥४|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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