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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
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_श्री नित्य-नैमित्तिक पूजन (खण्ड-२)
प्रतिमा प्रक्षाल पाठ
(दोहा) धन्य दिवस है आज का, धन्य घड़ी है आज। करें प्रभो प्रक्षाल हम, भाव विशुद्धि काज ॥१॥
(तर्ज- तुम्हारे दर्श बिन स्वामी) परम पावन अहो जिनवर, जगत की कलुषता हरते। स्वयं रागादि मल हरते, प्रभो ! प्रक्षाल हम करते॥२॥ स्वयं की साधना करके, त्रिजग की पूज्यता पाई। पूज्यता स्वयं की लखकर, प्रभो पूजा सहज करते ॥३॥ निहारें शान्त मुद्रा जब, नेत्र पावन सहज होते। हाथ होते सहज पावन, चरण-स्पर्श जब करते॥४॥ करें गुणगान भक्ति से, होय रसना तभी पावन । सहज ही चित्त हो पावन, प्रभु का ध्यान जब धरते ॥५॥ जन्म कल्याण में स्वामी, किया अभिषेक इन्द्रों ने। लगाया माथे गंधोदक, शीश जय-जय ध्वनि करते॥६॥ किन्तु स्नान ही त्यागा, धरी निग्रंथ दीक्षा जब। ध्यान धारा सहज वर्ते, प्रभु सब कर्म मल हरते॥७॥ पूर्ण निर्दोष निर्मल हो, तीर्थ प्रभु आप प्रगटाया। बहायी ज्ञानमय गंगा, भव्य स्नान शुभ करते॥८॥ अहो कैसा समय होगा, याद कर हर्ष उमगाता। महा आनंद से हम भी, अर्चना नाथ की करते॥९॥ धन्य जिनबिम्ब है जग में, अहो चिबिम्ब दर्शाते । नीर प्रासुक ही लेकर हम, प्रभो प्रक्षाल शुभ करते॥१०॥
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