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आध्यात्मिक
पूजन-1
- विधान संग्रह
(दोहा)
अन्तर्मुख मुद्रा सहित, शोभित श्री जिनराज ।
प्रतिमा प्रक्षालन करूँ, धरूँ पीठ यह आज || ॐ ह्रीं श्री पीठस्थापनं करोमि ।
(रोला) भक्ति रत्न से जड़ित आज मंगल सिंहासन | भेद - ज्ञान जल से क्षालित भावों का आसन || स्वागत है जिनराज ! तुम्हारा सिंहासन पर । हे जिनदेव पधारो श्रद्धा के आसन पर || ॐ ह्रीं श्री धर्मतीर्थाधिनाथ भगवन्निह सिंहासने तिष्ठ तिष्ठ । (थाली में जिनबिम्ब विराजमान करें) क्षीरोदधि के जल से भरे कलश ले आया । दृग - सुख - वीरज ज्ञानस्वरूपी आतम पाया || मंगल कलश विराजित करता हूँ जिनराजा । परिणामों के प्रक्षालन से सुधरें काजा ॥ ॐ ह्रीं अर्हं कलशस्थापनं करोमि ।
(चारों कोनों में निर्मल जल से भरे कलश स्थापित करें) जल-फल आठों द्रव्य मिलाकर अर्घ्य बनाया । अष्ट अंग युत मानो सम्यग्दर्शन पाया ॥ श्री जिनवर के चरणों में यह अर्घ्य समर्पित । करूँ आज रागादि विकारी भाव विसर्जित ॥
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(प्रक्षाल हेतु थाली स्थापित करें)
ॐ ह्रीं श्री स्नपनपीठस्थिताय जिनाय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । (पीठ स्थित जिनप्रतिमा को अर्घ्य चढ़ायें) मैं रागादि विभावों से कलुषित हे जिनवर । और आप परिपूर्ण वीतरागी हो प्रभुवर ॥ कैसे हो प्रक्षाल, जगत के अघ- क्षालक का । क्या दरिद्र होगा पालक ? त्रिभुवन पालक का ||
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