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________________ 209 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह भक्ति भाव के निर्मल जल से अघ-मल धोता। है किसका अभिषेक भ्रान्त चित खाता गोता। नाथ! भक्तिवश जिनबिम्बों का करूँ न्हवन मैं। आज करूँ साक्षात् जिनेश्वर का पर्शन मैं । ॐ ह्रीं श्रीमन्तं भगवन्तं कृपालसन्तं वृषभादिमहावीरपर्यन्तं चतुर्विंशतितीर्थंकर परम देवमाद्यानामाद्ये जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे आर्यखण्डे.....नाम्निनगरे मासानामुत्तमे ....... मासे.....पक्षे.....दिने मुन्यार्यिकाश्रावकश्राविकाणां सकलकर्मक्षयार्थं पवित्रतरजलेन जिनमभिषेचयामि। (चारों कलशों से अभिषेक करें तथा वादित्र नाद कराये एवं जय-जय शब्दोच्चारण करें) (दोहा) क्षीरोदधिसम नीर से, करूँ बिम्ब प्रक्षाल । श्री जिनवर की भक्ति से, जानूँ निज पर चाल ।। तीर्थंकर का न्हवन शुभ, सुरपति करें महान । पंचमेरु भी हो गये, महातीर्थ सुखदान ॥ करता हूँ शुभ भाव से, प्रतिमा का अभिषेक । ब→ शुभाशुभ भाव से, यही कामना एक ॥ जल-फलादि वसु द्रव्य ले, मैं पूजूं जिनराज । हुआ बिम्ब अभिषेक अब, पाऊँ निज पदराज । ॐ ह्रीं अभिषेकान्ते वृषभादिवीरान्तेभ्योऽयं निर्वपामीति स्वाहा । श्री जिनवर का धवल यश, त्रिभुवन में है व्याप्त । शान्ति करें मम चित्त में, हे परमेश्वर आप्त । (पुष्पाञ्जलिं क्षेपण करें) (रोला) जिनप्रतिमा पर अमृतसम जल-कण अति शोभित । आत्म-गगन में गुण अनन्त तारे भवि मोहित ॥ हो अभेद का लक्ष्य भेद का करता वर्जन । शुद्ध वस्त्र से जल-कण का करता परिमार्जन ।। (प्रतिमा को शुद्ध वस्त्र से पोंछे) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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