________________
आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
पञ्च महाव्रत पञ्च समिति धर, पञ्चेन्द्रिय जय जिनके पावन । षट् आवश्यक शेष सात गुण, बाहर दीखे जिनका लक्षण ॥४॥ विषय कषायारम्भ रहित हैं, ज्ञान ध्यान तप लीन साधुजन । करुणा बुद्धि होय भव्यों प्रति, करते मुक्ति मार्ग सम्बोधन ॥५॥ रचना शुभ शास्त्रों की करते, निरभिमान निस्पृह जिनका मन । आत्मध्यान में सावधान हैं, अद्भुत समतामय है जीवन ॥ ६ ॥ घोर परिषह उपसर्गों में, चलित न होवे जिनका आसन । अल्पकाल में वे पावेंगे, अक्षय, अचल, सिद्ध पद पावन ॥७॥ ऐसी दशा होय कब 'आत्मन्', चरणों में हो शत शत वंदन । मैं भी निज में ही रम जाऊँ, गुरुवर समतामय हो जीवन ॥८॥ धन्य मुनिराज की समता...
धन्य मुनिराज की समता, धन्य मुनिराज का जीवन । धन्य मुनिराज की थिरता, प्रचुर वर्ते स्वसंवेदन ॥ टेक ॥ शुद्ध चिद्रूप अशरीरी लखें, निज को सदा निज में । सहज समभाव की धारा, बहे मुनिवर के अंतर में || है पावन अन्तरंग जिनका, है बहिरंग भी सहज पावन ॥ धन्य...॥१॥
कर्मफल के अवेदक वे परम आनंद रस वेदें।
"
कर्म की निर्जरा करते, बढ़े जायें सु शिवमग में ॥ मुक्ति पथ भव्य प्रकटावें, अहो करके सहज दर्शन ॥ धन्य... ॥२॥ परम ज्ञायक के आश्रय से, तृप्त निर्भय सहज वर्ते । अवांछक निस्पृही गुरुवर, नवाऊँ शीश चरणन में || अन्तरंग हो सहज निर्मल, गुणों का होय जब चिन्तन ॥ धन्य...॥३॥ जगत के स्वांग सब देखे, नहीं कुछ चाह है मन में । सुहावे एक शुद्धातम, आराधूं होंस है मन में ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
18
www.jainelibrary.org