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________________ 17 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह सब संसार असार दिखाती, सारभूत समयसार दिखाती। साँचा मुक्तिमार्ग दिखाती, जिनवाणी जयवंत रहे ।।२।। नव तत्त्वों का स्वांग दिखाती, भिन्न सहज चिद्रूप दिखाती। ज्ञानमात्र शिवरूप दिखाती, जिनवाणी जयवंत रहे ॥३॥ अन्तर द्रव्य दृष्टि प्रकटाती, अनेकांतमय ज्योति जगाती। परम अहिंसा ध्वज फहराती, जिनवाणी जयवंत रहे॥४॥ सत्य शील सन्तोष जगाती, अविनाशी सुख शांति दिखाती। भाव नमन हो सहज नमन हो, जिनवाणी जयवंत रहे॥५॥ माँ जिनवाणी मुझ अन्तर में... माँ जिनवाणी मुझ अन्तर में, होकर मुझ रूप समा जाओ। शान्त शुद्ध ध्रुव ज्ञायक प्रभु की, महिमा प्रतिक्षण दर्शाओ॥टेक।। चैतन्य नाथ की बात सुने से, अद्भुत शान्ति मिलती है। मानो निज वैभव प्रकट हुआ, सब आधि-व्याधि टलती है॥१॥ ज्ञायक महिमा सुनते-सुनते, बस ज्ञायकमय जीवन होवे। निज ज्ञायक में ही रम जाऊँ, सुनने का भाव विलय होवे ॥२॥ हे माँ तेरा उपकार यही, प्रभु सम प्रभु रूप दिखाया है। चैतन्य रूप की बोधक माँ, मैं सविनय शीश नवाया है॥३॥ धन्य-धन्य मुनिवर का जीवन... धन्य-धन्य मुनिवर का जीवन, होवे प्रचुर आत्म संवेदन । धन्य-धन्य जग में शुद्धातम, धन्य अहो आतम आराधन ॥१॥ होय विरागी सब परिग्रह तज, शुद्धोपयोग धर्म का धारन । तीन कषाय चौकड़ी विनशी, सकल चरित्र सहज प्रगटावन ॥२॥ अप्रमत्त होवें क्षण-क्षण में परिणति निज स्वभाव में पावन । क्षण में होय प्रमत्तदशा फिर मूल अठ्ठाईस गुण का पालन ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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