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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह सित षाढ़ अष्टमि सु निर्वाण पायो, गिरनार पर्वत सु तीरथ कहायो।
अहो हम स्वयंसिद्ध निजपद निहारें, करें अर्चना भाव अपना सुधारें। ॐ ह्रीं आषाढशुक्लअष्टम्यांमोक्षमंगलमंडिताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अयं नि. स्वाहा ।
जयमाला
(दोहा) शंख चिन्ह चरणों लसे, शोभे श्याम शरीर । निरावरण विज्ञानमय, निश्चय से अशरीर ।।
(तर्ज: अहो जगत गुरुदेव...) । नेमिनाथ जिनराज तिहुँ जग मंगलकारी।
अनन्त चतुष्टयरूप, देव परम अविकारी।।टेक।। प्रभु पंचमभव पूर्व शुद्धातम पहिचाना,
धरि जिनदीक्षा आप पायो स्वर्ग विमाना। फिर तीजे भव माँहिं सोलहकारण भाई,
धर्मतीर्थ कर्तार प्रकृति पुण्य बंधाई॥ फेर हुए अहमिन्द्र तहँ तैं आप पधारे,
समुद्रविजय के लाल तुम ही शरण हमारे। दीन पशु लख आप ब्याह तजो दुखकारी,
____ हो विरक्त शिवहेतु निर्ग्रन्थ दीक्षा धारी॥ कियो काम चकचूर निज बल से ही स्वामी,
तिहुँ जग पूज्य ललाम हुए जितेन्द्रिय नामी। क्षपक श्रेणि चढ़ देव परमातम पद पायो,
धनपति ने तब आप समवशरण सु रचायो।। झलकें लोकालोक युगपद् परिणति माँहीं, ___ तदपि विकल्प न लेश रमे सहज निज माँहीं। नशे अठारह दोष आत्मीक गुण सोहे,
__ आयुध अम्बर नाहिं सौम्य दशा मन मोहे ।।
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