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________________ आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह खिरी दिव्यध्वनि देव दिव्यतत्त्व दर्शायो, समयसार अविकार सारभूत प्रगटायो । परलक्षी सब भाव दुखकारण बतलाये, रत्नत्रय सुखरूप सुखकारण दर्शाये ॥ जगत विभव निस्सार हमको भी प्रभु लागे, मिटा मोह दुखकार तुम चरणों के आगे । त्यागूँ जगत प्रपंच पुण्य-पाप दुखकारी, भाव यही जिनराज पाऊँ पद अविकारी ॥ ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । (घत्ता) जय नेमि जिनेश्वर, साँचे ईश्वर, शील शिरोमणि जितमारं । भव भय हर्तारं धर्माधारं जयवन्तो शिवदातारं ॥ ॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥ श्री पार्श्वनाथ जिनपूजन (छन्द- ताटंक) हे पार्श्वनाथ ! हे पार्श्वनाथ, तुमने हमको यह बतलाया । निज पार्श्वनाथ में थिरता से, निश्चय सुख होता सिखलाया || तुमको पाकर मैं तृप्त हुआ, ठुकराऊँ जग की निधि नामी । 176 हे रविसम स्व-पर प्रकाशक प्रभु, मम हृदय विराजो हे स्वामी ॥ ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम् । ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम् । ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् । (वीरछन्द) जड़ जल से प्यास न शान्त हुई, अतएव इसे मैं यहीं जूँ । निर्मल जल-सा प्रभु निजस्वभाव, पहिचान उसी में लीन रहूँ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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