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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह रत्न दीप सुन्दर सुज्ञानमय, लेकर श्री जिन चरण चढ़ाय। मोह तिमिर के नाश करन को, पूर्जे गुण गाऊँ हरषाय । धन्य-धन्य नेमीश्वर स्वामी, बालयती हो शिवपद पाय।
आतमनिधि दातार जिनेश्वर, भाव यही निजपद प्रगटाय ।। ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
अहो गंध दशधर्ममयी मैं, लेकर श्री जिन चरण चढ़ाय। अष्ट कर्म निर्मूल करन को, पूनँ गुण गाऊँ हरषाय ।।धन्य...॥ ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। प्रासुक फल मैं सहज भावमय, लेकर श्री जिन चरण चढ़ाय।
महामोक्ष फल प्राप्त करन को, पूनँ गुण गाऊँ हरषाय ॥धन्य...॥ ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अर्घ्य अनूपम जिनभक्तिमय, लेकर श्री जिन चरण चढ़ाय।
अविनाशी अनर्घ्य पद पाऊँ, पूजूं गुण गाऊँ हरषाय ॥धन्य...॥ ॐ ह्रीं श्री नेमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अयं निर्वपामीति स्वाहा ।
पंचकल्याणक अर्घ्य
(उपेन्द्रवज्रा, तर्जः मैं हूँ पूर्ण ज्ञायक..) कार्तिक सुदी षष्ठमि गर्भ माँहीं, आए प्रभो सर्व जन सुखपाँहीं। वर्षे रतनराशि महिमा अपारी, करें देवियाँ मातु सेवा सुखारी। ॐ ह्रींकार्तिकशुक्लषष्ठम्यांगर्भमंगलमंडिताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अयं नि. स्वाहा। श्रावण सुदी षष्ठमि सुखकारी, जन्में जिनेश्वर जग दुःखहारी। इन्द्रादि ने जन्म अभिषेक कीना, करें भावना जन्म हो ना नवीना॥ ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लषष्ठम्यांजन्ममंगलमंडिताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अयं नि. स्वाहा। तजोब्याह को स्वाँग दीक्षासुधारी, अभयरूप निर्ग्रन्थवृत्ति सम्भारी।
छटे श्रावणी सित जजों नाथ चरणं, दिखे विश्व में धर्म ही सत्य शरणं॥ ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लषष्ठम्यांतपोमंगलमंडिताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अयं नि. स्वाहा। धरो ध्यान जिनवर अचल अविकारी, नशे घातिया कर्म सब दुःखकारी। आश्विन सुदी प्रतिपदा सुखरूपं, जनूं नेमि पायो सु अर्हत् स्वरूपं ।। ॐ ह्रीं अषाढशुक्लप्रतिपदायां ज्ञानमंगलमंडिताय श्रीनेमिनाथजिनेन्द्राय अयं नि.। ।
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