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________________ 171 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह पंचकल्याणक अर्घ्य (वीरछन्द) आश्विन कृष्णा द्वितीया के दिन, शुभ गर्भ विर्षे प्रभुवर आए। अभिनन्दन मात-पिता का कर, देवों ने रत्न सु वर्षाये ।। ॐ ह्रीं आश्विनकृष्णद्वितीयायां गर्भमंगलमण्डिताय श्री नमिनाथजिनेन्द्राय अयं दसवीं अषाढ़ श्यामा के दिन, मंगलमय अन्तिम जन्म लिया। नरकों में भी साता आई, देवों ने उत्सव आन किया। ॐ ह्रीं अषाढकृष्णदशम्यां जन्ममंगलमण्डिताय श्री नमिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य नि.। दो देवों ने आ नमन किया, अपराजित प्रभु वृतान्त कहा। तब जातिस्मरण हुआ सुखमय, कलिषाढ़ दशैं तप आप लहा॥ . ॐ ह्रीं अषाढ़कृष्णदशम्यां तपोमंगलमण्डिताय श्री नमिनाथजिनेन्द्राय अयं नि.। शुद्धातम रस में लीन हुए, तब चार घाति चकचूर किए। मगसिर सित एकादशि स्वामी, केवलज्ञानी अरहंत हुए। ॐ ह्रीं मगसिरशुक्लैकादशम्यां ज्ञानमंगलमण्डिताय श्री नमिनाथजिनेन्द्राय अयं नि.। है टोंक मित्रधर सुखकारी, सम्मेदशिखर से सिद्ध हुए। वैशाख कृष्ण चौदश के दिन, प्रभु आवागमन विमुक्त हुए। ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णचतुर्दश्यां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री नमिनाथजिनेन्द्राय अयं नि.। जयमाला __(दोहा) भाव सहित पूजा करी, गाऊँ अब जयमाल। परिणति अन्तर में ढले, होऊँ सहज निहाल । (छन्द-रोला) जयवन्तो नमिनाथ विश्व के जाननहारे । जयवन्तो नमिनाथ दोष रागादि निवारे ।। जयवन्तो नमिनाथ मोहतम नाशन हारे। जयवन्तो नमिनाथ भवोदधि तारण हारे ।। चरण परस से भूमि जगत में तीर्थ कहाई। भाव विशुद्धि की निमित्त सबको सुखदाई ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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