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________________ 170 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह (छन्द-चाल) सम्यक् जल ले अविकारी, पूजूं चैतन्य विहारी। नमिनाथ चरण सिर नाऊँ, जन्मादिक दोष नशाऊँ। ॐ ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। निर्वांछक चन्दन पाऊँ, प्रभु चाह दाह बिनशाऊँ। नमिनाथ चरण सिर नाऊँ, धर्मामृत धार बहाऊँ। ॐ ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। क्षत् अक्षत भेद विचारूँ, विचिकित्सा दोष विडारूँ। नमिनाथ चरण सिर नाऊँ, अक्षत से पूज रचाऊँ।। ॐ ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। प्रभुप्रासुक पुष्प चढ़ाऊँ, परिणति निजमाँहिं लगाऊँ। नमिनाथ चरण सिर नाऊँ, निष्काम भावना भाऊँ॥ ॐ ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । शुद्धात्म परमरस स्वादी, नाशो मम क्षुधा कुव्याधी। नमिनाथ चरण सिर नाऊँ, प्रासुक नैवेद्य चढ़ाऊँ। ॐ ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। मोहान्धकार नहीं भावे, ताको प्रभु ज्ञान नशावे। नमिनाथ चरण सिर नाऊँ, प्रभु सम केवल प्रगटाऊँ। ॐ ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। प्रभु ध्यान अग्नि प्रजलाई, कर्मों की धूल उड़ाई। नमिनाथ चरण सिर नाऊँ, वात्सल्य भाव प्रगटाऊँ। ॐ ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। वैभाविक फल विनशाया, प्रभु धर्म प्रभाव बढ़ाया। नमिनाथ चरण सिरनाऊँ, जिनमुक्तिमहाफल पाऊँ। ॐ ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। अष्टांग अर्घ्य ले स्वामी पूजूं मैं अन्तर्यामी । नमिनाथ चरण सिर नाऊँ, अविचल अनर्घ्यपद पाऊँ। ॐ ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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