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________________ 169 आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह मोह अंधेरा दूर हुआ है, वस्तु स्वभाव धर्म भासा । जीव-अजीव भिन्न दिखलावें, दुखकारण आस्रव नाशा ॥ संवर पूर्वक होय निर्जरा, कर्म बंध तड़ तड़ टूटें | धन्य परम निर्मुक्त दशा हो, पर - सम्बन्ध सभी छूटें ॥ तृप्त स्वयं में मग्न स्वयं में, काल अनंत रहें अविकार । यही भावना सहज पूर्ण हो, और चाह नहीं रही लगार ॥ करें अनुसरण प्रभो आपका, आराधन निज आतम का । हुआ सहज विश्वास मुनीश्वर, पद पाऊँ परमातम का ॥ (छन्द-घत्ता) अनुपम गुणधारी, हे अविकारी, मुनिसुव्रत जिनशरण लही । रत्नत्रय पाऊँ मंगल गाऊँ, जाऊँ अष्टम मुक्ति मही ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालार्घ्यं निर्व. स्वाहा । (सोरठा) पूजा श्री जिनराज, महाभाग भविजन करें । पावें सिद्ध समाज, तीन लोक में पूज्य हों ॥ ॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥ श्री नमिनाथ जिनपूजन (छन्द-पद्धरि) नमिनाथ जजूँ जिननाथ भजूँ, मिथ्या संकल्प - विकल्प तजूँ । ये ही शिवसुख का कारण है, निजभाव सजूँ निजभाव भजूँ ॥ अति पुण्योदय जागा स्वामिन् बहुमान आपका आया है। पूजन करते ज्ञानानन्द सागर, अन्तर में उछलाया है ॥ ॐ ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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