SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 168 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह तिथि वैशाख वदी नवमी चित थिर कियो, क्षपक श्रेणि चढ़ घाति नाशि केवल लियो। दिव्यध्वनि सुन भव्य अनेक सु तिर गये, पूजत अहो जिनेश भाव सम्यक् भये। ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णनवम्यां ज्ञानमंगलमण्डिताय श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अयं निर्जर टोंक शिखर सम्मेद तें शिव गये, फाल्गुन कृष्णा बारस सिद्धालय ठये। परम मुक्त शुद्धात्म स्वरूप दिखाइया, हे प्रभु हमहू पावें भाव जगाइया॥ ॐ ह्रींफाल्गुनकृष्णद्वादशम्यां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अयं जयमाला (दोहा) जीते अन्तर शत्रु प्रभु, इन्द्रिय विषय-कषाय । मुनिव्रत धरि शिवपदलह्यो, मुनिसुव्रत जिनराय॥ (वीरछन्द) पूजा करके भक्ति करते, मुनिसुव्रत भगवान की। यही भावना प्रभु सम पावें, पदवी हम निर्वाण की॥ देखो प्रभु ने सहज भाव से, दुर्लभ रत्नत्रय धारा। जगत प्रपंच तजे दु:खकारी, मुनि दीक्षा को स्वीकारा ।। सभी जीव दुःखों से छूटे, पावें आतम ज्ञान को। पाप-पुण्य की बेड़ी टूटें, धारें आतम ध्यान को॥ जब ही ऐसे भाव जगे थे, प्रकृति बँधी तीर्थंकर की। हुए पंचकल्याणक मण्डित, जय हो जगत हितंकर की॥ सोमा-नन्दन कर्म निकन्दन, धर्मतीर्थ जो प्रगटाया। महाभाग्य हमने भी पाया, महानन्द उर में छाया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy