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________________ 167 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह ध्यान अग्नि में कर्म जलाऊँ, उर्ध्वगमन से शिवपुर जाऊँ। मुनिसुव्रत प्रभु गुण उच्चारूँ, धन्य भाग्य जब मुनिव्रत धारूँ। ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। सभी पुण्यफल हेय लखाऊँ, निर्वांछक हो शिवफल पाऊँ। मुनिसुव्रत प्रभु गुण उच्चारूँ, धन्य भाग्य जब मुनिव्रत धारूँ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। द्रव्य-भावमय अर्घ्य चढ़ाऊँ, पद अनर्घ्य प्रभु सम प्रगटाऊँ। मुनिसुव्रत प्रभु गुण उच्चारूँ, धन्य भाग्य जब मुनिव्रत धारूँ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। पंचकल्याणक अर्ध्य (छन्द-अडिल्ल) श्रावण कृष्णा दूज गर्भ आए प्रभो, सोला सपने माँ को दिखलाए विभो। करें देवियाँ सेव मात की चाव सों, हम हू पूजें जिनवर भक्ति भाव सों॥ ॐ ह्रीं श्रावणकृष्णद्वितीयायां गर्भमंगलमण्डिताय श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य तिथि वैशाख वदी दशमी अति पावनी, जन्मकल्याणक की थी छटा सुहावनी। मेरु शिखर पर इन्द्र प्रभु को ले गयो, किया महा-अभिषेक जगत आनन्द भयो। ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णदशम्यां जन्ममंगलमण्डिताय श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अयं लख गजराज प्रसंग विरक्ति मन धरी, ली हरिवंश शिरोमणि ! दीक्षा शिवकरी। तिथि वैशाख वदी दशमी सुखकार थी, मुनिसुव्रत की गूंजी जय-जयकार थी॥ ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णदशम्यां तपोमंगलमण्डिताय श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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