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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
ध्यान अग्नि में कर्म जलाऊँ, उर्ध्वगमन से शिवपुर जाऊँ।
मुनिसुव्रत प्रभु गुण उच्चारूँ, धन्य भाग्य जब मुनिव्रत धारूँ। ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
सभी पुण्यफल हेय लखाऊँ, निर्वांछक हो शिवफल पाऊँ।
मुनिसुव्रत प्रभु गुण उच्चारूँ, धन्य भाग्य जब मुनिव्रत धारूँ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
द्रव्य-भावमय अर्घ्य चढ़ाऊँ, पद अनर्घ्य प्रभु सम प्रगटाऊँ।
मुनिसुव्रत प्रभु गुण उच्चारूँ, धन्य भाग्य जब मुनिव्रत धारूँ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।
पंचकल्याणक अर्ध्य
(छन्द-अडिल्ल) श्रावण कृष्णा दूज गर्भ आए प्रभो,
सोला सपने माँ को दिखलाए विभो। करें देवियाँ सेव मात की चाव सों,
हम हू पूजें जिनवर भक्ति भाव सों॥ ॐ ह्रीं श्रावणकृष्णद्वितीयायां गर्भमंगलमण्डिताय श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य तिथि वैशाख वदी दशमी अति पावनी,
जन्मकल्याणक की थी छटा सुहावनी। मेरु शिखर पर इन्द्र प्रभु को ले गयो,
किया महा-अभिषेक जगत आनन्द भयो। ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णदशम्यां जन्ममंगलमण्डिताय श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अयं लख गजराज प्रसंग विरक्ति मन धरी,
ली हरिवंश शिरोमणि ! दीक्षा शिवकरी। तिथि वैशाख वदी दशमी सुखकार थी,
मुनिसुव्रत की गूंजी जय-जयकार थी॥ ॐ ह्रीं वैशाखकृष्णदशम्यां तपोमंगलमण्डिताय श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अर्घ्य
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