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________________ 166 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनपूजन (गीतिका) मुनिनाथ त्रिभुवननाथ पूजित, मुनिसुव्रत प्रभु को नमूं । प्रभु भक्तिमय धरि भाव निर्मल, मोह मायादिक व॥ मम हृदय में आओ विराजो, हर्ष से पूजन करूँ। निर्भेद हो, निरखेद हो, निर्मुक्त प्रभुता विस्तरूँ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठःठः। ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (छन्द-चौपाई) आत्मतीर्थ जल से अविकारी, भाव सहित पूजूं त्रिपुरारी। मुनिसुव्रत प्रभु गुण उच्चारूँ, धन्य भाग्य जब मुनिव्रत धारूँ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। भव-आताप विनाशन हारी, चन्दन से पूजूं उपकारी। मुनिसुव्रत प्रभु गुण उच्चारूँ, धन्य भाग्य जब मुनिव्रत धारूँ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। अक्षय आबाधित पद धारी, अक्षत से पूजें अविकारी। मुनिसुव्रत प्रभु गुण उच्चारूँ, धन्य भाग्य जब मुनिव्रत धारूँ। ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। परम ब्रह्ममय रूप सु ध्याऊँ, काम वासना दूर भगाऊँ। मुनिसुव्रत प्रभु गुण उच्चारूँ, धन्य भाग्य जब मुनिव्रत धारूँ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा । निजरस आस्वादी हो स्वामी, नायूँ क्षुधा महादुखदानी। मुनिसुव्रत प्रभु गुण उच्चारूँ, धन्य भाग्य जब मुनिव्रत धारूँ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। स्वपर ज्ञानमय ज्योति जगाऊँ, मोह महातम सहज मिटाऊँ। मुनिसुव्रत प्रभु गुण उच्चारूँ, धन्य भाग्य जब मुनिव्रत धारूँ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । I Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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