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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
श्री मुनिसुव्रतनाथ जिनपूजन
(गीतिका) मुनिनाथ त्रिभुवननाथ पूजित, मुनिसुव्रत प्रभु को नमूं । प्रभु भक्तिमय धरि भाव निर्मल, मोह मायादिक व॥ मम हृदय में आओ विराजो, हर्ष से पूजन करूँ।
निर्भेद हो, निरखेद हो, निर्मुक्त प्रभुता विस्तरूँ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठःठः। ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्।
(छन्द-चौपाई) आत्मतीर्थ जल से अविकारी, भाव सहित पूजूं त्रिपुरारी।
मुनिसुव्रत प्रभु गुण उच्चारूँ, धन्य भाग्य जब मुनिव्रत धारूँ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
भव-आताप विनाशन हारी, चन्दन से पूजूं उपकारी।
मुनिसुव्रत प्रभु गुण उच्चारूँ, धन्य भाग्य जब मुनिव्रत धारूँ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
अक्षय आबाधित पद धारी, अक्षत से पूजें अविकारी।
मुनिसुव्रत प्रभु गुण उच्चारूँ, धन्य भाग्य जब मुनिव्रत धारूँ। ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।
परम ब्रह्ममय रूप सु ध्याऊँ, काम वासना दूर भगाऊँ।
मुनिसुव्रत प्रभु गुण उच्चारूँ, धन्य भाग्य जब मुनिव्रत धारूँ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।
निजरस आस्वादी हो स्वामी, नायूँ क्षुधा महादुखदानी।
मुनिसुव्रत प्रभु गुण उच्चारूँ, धन्य भाग्य जब मुनिव्रत धारूँ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
स्वपर ज्ञानमय ज्योति जगाऊँ, मोह महातम सहज मिटाऊँ।
मुनिसुव्रत प्रभु गुण उच्चारूँ, धन्य भाग्य जब मुनिव्रत धारूँ॥ ॐ ह्रीं श्री मुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
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