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________________ i आध्यात्मिक - विधान संग्रह पूजन ध्यान द्वार से मम परिणति में निवसो स्वामी । रत्नत्रयमय भाव - तीर्थ प्रगटे जगनामी ॥ परमानन्दमय नाथ भाग्य से तुमको पाया। भव भव का संताप सर्व ही सहज पलाया ॥ भेदज्ञान की ज्योति जगी गुण चिन्तत प्रभुजी | आत्मज्ञान की कला खिली, अन्तर में जिनजी ॥ निज प्रभुता में मग्न नाथ जग प्रभुता पाई । भई विभूति समवशरण की मंगलदाई || दिव्य - ध्वनि से दिव्य-तत्त्व प्रभुवर दर्शाया । सम्यक् सरस सरल शिवपथ जिनवर दर्शाया || निर्मोही हो नाथ आपका मारग पाऊँ । आप रहो आदर्श मुक्तिमारग मैं धाऊँ ॥ राग-द्वेष मय वैभाविक परिणति मिट जावे । रहूँ परम निर्मुक्त स्वपद प्रभु सम प्रगटावे ॥ वचनातीत स्वरूप वचन में कैसे आवे । चिन्तन भी प्रभु महिमा का कुछ पार न पावे ॥ अहो ! स्वानुभवगम्य नाथ को निज में ध्याऊँ। प्रभु पूजा के निमित्त सहज पुरुषार्थ बढ़ाऊँ ॥ (छन्द - घत्ता) धनि धनि नमिनाथा, नावें माथा, इन्द्रादिक तव चरणों में। भव दुःख नशाऊँ, ध्यान बढ़ाऊँ, शिवसुख पाऊँ चरणों में ॥ ॐ ह्रीं श्री नमिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । (दोहा) करें करावें मोद धर, पूजा श्री जिनराज । स्वर्गादिक सुख पायके, पावें शिवपद राज ॥ ॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥ Jain Education International 172 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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