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________________ 162 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह प्रभो आप सम ही परम लीनता हो, परम मुक्तता हो, परम पूर्णता हो। ॐ ह्रीं श्री अरनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालायँ निर्वपामीति स्वाहा। (सोरठा) निज कल्याण स्वरूप, धर्मचक्र के अर प्रभो। पूर्जे हे शिवभूप ! होवें मंगल नित नये ।। ॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥ श्री मल्लिनाथ जिनपूजन (छन्द-अडिल्ल) मल्लिनाथ जिनराज, परम आदर्श हो। भविजन को सुखदाय, आपका दर्श हो। देव आप सम ब्रह्मचर्य वर्ते सदा। पूजूं तुम्हें जिनेश, हर्ष उर में महा ।। (छन्द-दोहा) परम जितेन्द्रिय जिन हुए, काम सुभट को जीत । स्वाभाविक आनंद की, जागी सहज प्रतीति ।। ॐ ह्रीं श्री मल्लिनाथजिनेन्द्राय ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री मल्लिनाथजिनेन्द्राय ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठःठः। ॐ ह्रीं श्री मल्लिनाथजिनेन्द्राय ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (छन्द-अवतार) जल जाना प्रभु निस्सार, चरणन माँहिं तनँ। तुमसम ही हे जिनराय, अव्यय भाव सपूँ। हे बालयती तीर्थेश, नित प्रति शिर नाऊँ। हे मल्लिनाथ जिनराज, शाश्वत पद पाऊँ। ॐ ह्रीं श्री मल्लिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। प्रभु चन्दनादि निस्सार, चरणन माँहिं तनँ। तुम सम ही हे जिनराज, शीतल शांत रहूँ।हे बालयती..॥ ॐ ह्रीं श्री मल्लिनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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