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आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
प्रभु दिव्य-ध्वनि के द्वारा, सन्मार्ग था बताया । तत्त्वों का मार्ग सुनकर, भव्यों ने बोध पाया ॥ जिनमार्ग पर चलूँ मैं, निर्भय निःशंक होकर ॥ आतम ॥
अनुपम है प्रभुता प्रभु की, अद्भुत है महिमा प्रभु की। वचनों से कैसे गावें, हम स्तुति सु प्रभु की ॥ हो ज्ञान में प्रतिष्ठित बस ज्ञान ही जिनेश्वर । आतम. ॥ चिन्मूर्ति हो विराजे, ज्यों मुक्ति में हे स्वामी । ध्रुव अचल ऋद्धि पाई, विश्वेश त्रिजग नामी ॥ सो भावना मैं भाऊँ, चरणों में शीश धरकर ॥ आतम. ॥ (छन्द-घत्ता)
प्रभु के गुण गावें, मुनिजन ध्यावें, शुद्धातम में लीन भये । रागादि विनाशे, ज्ञान प्रकाशे, कर्म महारिपु सहज जये ॥
ॐ ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
(दोहा)
पूजा कुन्थु जिनेश की, नित नव मंगलकार । जग प्रपंच से काढ़ि कै, रत्नत्रय दातार । ॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥
श्री अरनाथ जिनपूजन (छन्द-लावनी)
अरनाथ जिनेश्वर, दुर्लभ दर्शन पाया।
जगतपूज्य ! पूजा का भाव जगाया ॥ मदनेश्वर, चक्री, तीर्थंकर पद धारी ।
मम हृदय पधारो, भाव रहें अविकारी ॥
ॐ ह्रीं श्री अरनाथजिनेन्द्राय ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री अरनाथजिनेन्द्राय ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं श्री अरनाथजिनेन्द्राय ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
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