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आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
टोंक ज्ञानधर से शिव पायो, सुदि एकम वैशाख दिना । हरिनिर्वाण महोत्सव कीनो, पूजूँ मन वच काय बिना ॥
ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लप्रतिपदायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं ।
जयमाला (दोहा)
परम अहिंसा धर्म का, दिया सत्य उपदेश । निजानन्द में मग्न हो, गाऊँ सुयश जिनेश । (तर्ज - दिन रात मेरे स्वामी...)
आया शरण तुम्हारी, हे कुन्थुनाथ जिनवर | आतम निधि सुपाऊँ, पुरुषार्थ जागे प्रभुवर ॥ टेक ॥
जब से स्वरूप देखा, नहीं और कुछ सुहावे । ज्यों मीन जल बिना त्यों, मम चित्त छटपटावे ॥ निजपद की भावना है, तुम सम ही होऊँ सत्वर ॥ आतम । प्रभु चक्रवर्ती पद को तृण के समान छोड़ा | होकर परम जितेन्द्रिय, विषयों से मुख को मोड़ा || भव जाल से विरत हो, हुए सहज दिगम्बर | | आतम ॥ धनि धर्म मित्र श्रावक, आहार प्रथम दीना । निज आत्म भावना से, मुक्ती का मार्ग लीना ॥ देवों ने हर्ष कीना, पंचाश्चर्य प्रगट कर । आतम. ॥ एकाग्र हुए स्वामी, निज भाव थे निहारे । फिर क्षपक श्रेणि चढ़कर, घाती करम संहारे ॥ प्रगटा अनंत चतुष्टय, हुए अरहंत सुखकर | आतम. ॥ दश जन्म के थे अतिशय, कैवल्य के हुए दश । देवों ने कीने चौदह, थे प्रातिहार्य भी अठ ॥ धनपति ने भक्ति कीनी विभु समवशरण रचकर ॥ आतम. ॥
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