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आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
लोकालोक प्रकाशक हो प्रभु फिर भी दीप चढ़ाता हूँ । मोह अंधेरा दूर भगाने, ज्ञान भावना भाता हूँ । कुन्थुनाथ की पूजा करते, हृदय हर्षित होता है।
भक्तिभाव से प्रभु गुण गाते, आनन्द विलसित होता है । ॐ ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्रायें मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा । धन्य प्रभो ! निष्कर्म अवस्था, मेरे मन को भाई है ।
वैभाविक दुष्कर्म जलाने, ध्यान अग्नि प्रगटाई है | कुन्थुनाथ...॥ ॐ ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा । तुम जैसा अविनाशी फल, पाने को चित्त ललचाया है।
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प्रासुकफल ले भक्तहृदय प्रभु, चरणशरण में आया है ॥ कुन्थुनाथ..॥ ॐ ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा । प्रभु अनर्घ्य वैभव लख, मेरा रोम-रोम पुलकाया है।
ऐसा पद प्रगटाने स्वामी, सविनय अर्घ्य चढ़ाया है ॥ कुन्थुनाथ...॥ ॐ ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । पंचकल्याणक अर्ध्य (वीरछन्द)
तजि विमान सर्वार्थसिद्धि प्रभु, गर्भ विषै आये सुखकार । श्रावण कृष्णा दशमी के दिन, पूजूँ जिनवर मंगलकार ॥ ॐ ह्रीं श्रावणकृष्णदशम्यां गर्भमंगलमण्डिताय श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. । एकम सुदि वैशाख सु पावन, हुई बधाई मंगलकार । अन्तिम जन्म हुआ हे स्वामी, पूजें हरि करि उत्सव सार ॥
ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लप्रतिपदायां जन्ममंगलमण्डिताय श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं । नगरी की शोभा को लखते, जागा उर वैराग्य महान । धनि एकम वैशाख सुदी को, पद निर्ग्रन्थ लिया अम्लान ॥
ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लप्रतिपदायां तपोमंगलमण्डिताय श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं । केवल पायो चैत सुदी तृतीया को घातिकर्म चकचूर । अद्भुत समवशरण की शोभा, धर्म प्रभाव हुआ भरपूर ॥ ॐ ह्रीं चैत्रशुक्ल तृतीयायां ज्ञानमंगलमण्डिताय श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं नि. ।
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