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________________ 155 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह श्री कुन्थुनाथ जिनपूजन (दोहा) कामदेव होकर प्रभो ! किया काम निर्मूल। चक्रवर्तीपद सम्पदा, समझी तुमने धूल ।। निर्ग्रन्थ पद आराधकर, धर्म तीर्थ प्रगटाय। हुए मुक्त श्री कुन्थु प्रभु, पूजूं प्रीति बढ़ाय ।। ॐ ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। ॐ ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । (वीरछन्द) अन्तर साम्यभाव धारण कर, जल जिनचरणों में लाऊँ। जन्म-जरा-मृत दोष नाशने, अविनाशी निजपद ध्याऊँ॥ कुन्थुनाथ की पूजा करते, हृदय हर्षित होता है। भक्तिभाव से प्रभु गुण गाते, आनन्द विलसित होता है। ॐ ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। सहज भाव से शान्त भावं से, चन्दन नाथ चढ़ाता हूँ। क्रोधादिक संताप मेटने, आत्म भावना भाता हूँ॥कुन्थुनाथ...॥ ॐ ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। निर्मल अक्षत जिनवर सन्मुख, सविनय आज चढ़ाता हूँ। क्षत् भावों से उदासीन हो, अक्षय पद को ध्याता हूँ॥कुन्थुनाथ...॥ ॐ ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। तुम्हें नाथ निष्काम निरखकर, प्रासुक पुष्प चढ़ाता हूँ। कामभाव को निष्फल करने, ब्रह्म भावना भाता हूँ॥कुन्थुनाथ...॥ ॐ ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। देव ! स्वयं में तृप्त तुम्हें लख, यह नैवेद्य चढ़ाता हूँ। क्षुधा वेदना हरने को, परिपूर्ण भावना भाता हूँ॥कुन्थुनाथ...॥ ॐ ह्रीं श्री कुन्थुनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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