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________________ आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह हे देव ! क्रोध बिन कर्म शत्रु किम मारा ? बिन राग भव्यजीवों को कैसे तारा? निर्ग्रन्थ अकिंचन हो त्रिलोक के स्वामी, हो निजानन्दरस भोगी योगी नामी ॥ अद्भुत, निर्मल है सहज चरित्र तुम्हारा ॥ चित शान्त हुआ मैं... ॥२॥ सर्वार्थसिद्धि से आ परमार्थ सु साधा, हो कामदेव निष्काम तत्त्व आराधा । तजि चक्र सुदर्शन, धर्मचक्र को पाया, कल्याणमयी जिनधर्मतीर्थ प्रगटाया ॥ अनुपम प्रभुता माहात्म्य विश्व से न्यारा ॥ चित शान्त हुआ मैं ... ॥३॥ गुणगान करूँ हे नाथ आपका कैसे ? ज्ञानमूर्ति ! हो आप आप ही जैसे । हो निर्विकल्प निर्ग्रन्थ निजातम ध्याऊँ, परभावशून्य शिवरूप परमपद पाऊँ ॥ अद्वैत नमन हो प्रभो सहज अविकारा || चित शान्त हुआ मैं... कुछ रहा न भेद विकल्प पूज्य पूजक का, उपजे न द्वन्द दुःखरूप साध्य-साधक का । ज्ञाता हूँ ज्ञातारूप असंग रहूँगा, 154 पर की न आस निज में ही तृप्त रहूँगा । स्वभाव स्वयं को होवे मंगलकारा ॥ चित शान्त हुआ मैं... ॥५॥ (घत्ता) जय शान्ति जिनेन्द्रं, आनन्दकन्दं, नाथ निरंजन कुमतिहरा । जो प्रभु गुणगावें, पाप मिटावें, पावें आतमज्ञान वरा ॥ Jain Education International 11811 ॐ ह्रीं श्री शान्तिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमाला - पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा । दोहा - भक्तिभाव से जो जजें, जिनवर चरण पुनीत । वे रत्नत्रय प्रगटकर, लहें मुक्ति नवनीत ॥ ॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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