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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
(सोरठा) जन्म-जरा-मृत नाश के, हुए प्रगट भगवान। प्रभु समान शुद्धात्मा, अविनाशी पहिचान ॥ सहज भक्ति उर धारि के, पूनँ अर जिनराय।
ध्याऊँ ध्रुव परमात्मा, परमानन्द विलसाय ।। ॐ ह्रीं श्री अरनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
भवाताप नाशक सुतप, कियो जिनेश्वर देव।
मिटती भक्ति प्रसाद से, चाह दाह स्वयमेव ॥सहज..॥ ॐ ह्रीं श्री अरनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा।
क्षत के कारण घातिया, आत्म ध्यान से नाश।
अक्षय गुणमय आत्मा, किया विभो परकाश ॥सहज..॥ ॐ ह्रीं श्री अरनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा ।
आर्त ध्यान के हेतु हैं, रौद्र ध्यानमय भोग।
उत्तम शील प्रकाशकर, कीनो पूरण योग ।।सहज..॥ ॐ ह्रीं श्री अरनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
निज रस में संतुष्ट हो, क्षुधा वेदनी टाल ।
सो रस निज में ही झरे, पीवत होय निहाल ॥सहज..॥ ॐ ह्रीं श्री अरनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
सहज ज्ञानमय आत्मा, भासा तत्त्व महान।
मोहादिक विध्वंस कर, पाया केवलज्ञान ॥सहज..॥ ॐ ह्रीं श्री अरनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
कर्मेन्धन को भस्म कर, धर्म सुगन्ध सुदेय।
तीन लोक पूजित हुए, दिव्य धूप मैं लेय ॥सहज..॥ ॐ ह्रीं श्री अरनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
कर्म प्रकृति त्रेसठ तजी, पच्चासी फिर नाशि।
महामोक्षफल प्रभु लहो, गुण अनन्त की राशि।।सहज..॥ ॐ ह्रीं श्री अरनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।
निज अनर्घ्य प्रभुता अहो! प्रगटाई जिननाथ।
सो प्रभुता अन्तर लखी, अर्घ्य लेय हे नाथ ॥सहज..॥ ॐ ह्रीं श्री अरनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ।
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