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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह
धर्मतीर्थ की कर प्रभावना, गये नाथ निर्वाण । धर्मतीर्थ जिनवर का पाकर किया स्व-पर कल्याण॥ भाव सहित प्रभु पूजन करके, उपजा उर आनन्द।
सहज भावना होवे स्वामी, रहूँ परम निर्द्वन्द्व ।। ॐ ह्रीं श्री श्रेयांसनाथ-जिनेन्द्राय जयमालाऽयं निर्वपामीति स्वाहा।
(सोरठा) सर्व सिद्धि दातार, वीतराग सर्वज्ञ जिन । सहज लहें भवपार, अनुगामी हो आप के॥
॥ पुष्पांजलिं क्षिपामि ॥ श्री वासुपूज्य जिनपूजन
(सवैया तेईसा, तर्ज-वीर हिमाचल तें..) बालयती वसुपूज्यतनय, प्रभु वासव सेवित त्रिभुवन नामी। बारहवें तीर्थंकर हो, संयुक्त सुगुण छियालिस अभिरामी।। मुक्तिमार्ग मिल्या भविजन को, दिव्यध्वनि द्वारा हे स्वामी। भाव भये शुभ पूजन के, तिष्ठो उर में हे अन्तरयामी॥
(दोहा) हर्षित हो पूजूं चरण, चिंतूं गुण अभिराम।
आरा परमात्म पद, पाऊँ शाश्वत धाम॥ ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्य-जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्य-जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्य-जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
(छंद-गीतिका) निज आत्मतीर्थ सु पाइया, समतामयी जल जहाँ भरा। मिथ्यात्व मल छूट्यो प्रभो ! स्नान करि निर्मल भया॥ श्री वासुपूज्य जिनेन्द्र की, पूजा करूँ अति चाव सों।
आनन्दमय ब्रह्मचर्य वर्ते, नाथ ! सहज स्वभाव सों। ॐ ह्रीं श्री वासुपूज्य-जिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं नि. स्वाहा ।
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