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आध्यात्मिक पूजन- विधान संग्रह
श्रावण शुक्ल पूर्णिमा जिनवर, मुक्ति पधारे सकल कर्म - हर । इन्द्र मोक्ष कल्याण मनावें, भक्ति सहित प्रभु पूज रचावें || ॐ ह्रीं श्रावणशुक्लपूर्णिमायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्री श्रेयांसनाथ - जिनेन्द्राय अर्घ्यं ..।
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जयमाला (दोहा)
श्रेय रूप श्रेयांस जिन, परम श्रेय दर्शाय ।
आप बसे शिवलोक में, भक्ति करूँ सुखदाय ॥
हे श्रेयांस जिनेश प्रभु, श्रेय रूप अविकार । दर्शायो प्रभुवर सहज, रत्नत्रय सुखकार ॥ (छंद-सरसी)
नलिनप्रभ राजा के भव में रत्नत्रय प्रकटाकर । तीर्थंकर प्रकृति बांधी थी, सोलहकारण भाकर ॥ आयु पूर्णकर साधु समाधि पूर्वक छोड़ी देह । स्वर्ग सोलवें इन्द्र हुए थे भावें सदा विदेह || तहँते चयकर सिंहपुरी में लिया प्रभु अवतार | दिव्योत्सव करते इन्द्रादिक देखत दृष्टि हजार ॥ मति - -श्रुत अवधिज्ञान के धारक जन्म समय से आप | अतिशय रूप निरखते नाशें भव-भव के संताप ॥ पुण्योदय के भोग भोगते अन्तर रहे उदास । पतझड़ के तरु देखे इक दिन काल लगा गृहवास ॥ भायी प्रभु वैराग्य भावना, लौकान्तिक सुर आय। अनुमोदन करते प्रभुवर का, चरणों में सिर नाय || सहज भाव से दीक्षा लीनी, हुए नाथ निर्ग्रथ । । तप कल्याणक देव मनावें, आप बढ़े शिवपन्थ ॥ आत्म ध्यान से अल्पकाल में प्रगटा केवलज्ञान । समवशरण में दिव्य ध्वनि से दिया तत्त्व का ज्ञान ॥
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