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________________ 134 आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह प्रभु भ्रम तम नाशे ज्ञान प्रकाशे, तातै प्रभुवर चरण जजें। निर्मोह रहावें ज्ञान बढ़ावें, सहज परम निजभाव भनें । श्रेयांस जिनेन्द्रं इन्द्र नरेन्द्र, पूजत अन्तर्दृष्टि धरें। तिहुँ जग ज्ञातारं शिवदातारं, प्रभु चरणों में नमन करें। ॐ ह्रीं श्री श्रेयांसनाथ-जिनेन्द्राय मोहांधकार-विनाशनाय दीपं नि. स्वाहा। प्रभु कर्म महावन भूलि रहे हम, शिव मारग है नहिं भाया। निज ध्येय सु ध्यावें कर्म नशावें, परम धरम प्रभु से पाया ॥श्रेयांस.॥ ॐ ह्रीं श्री श्रेयांसनाथ-जिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं नि. स्वाहा। जिन कर्मों के फल हुए सुव्याकुल, सो फल प्रभुवर नहिं चाहें। सब सिद्धि प्रदाता शिवफलदाता, धर्म कल्पतरु प्रगटाएँ ॥श्रेयांस.॥ ॐ ह्रीं श्री श्रेयांसनाथ-जिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं नि. स्वाहा। ले द्रव्य सु अर्घ्य भाव अनर्थ्य, आनन्द सों जिनवर पूजें। श्रद्धान जगाया भाव बढ़ाया, भव-भव के पातक धूजें ॥श्रेयांस.॥ ॐ ह्रीं श्री श्रेयांसनाथ-जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य नि. स्वाहा। पंचकल्याणक अर्घ्य (चौपाई) विमला माँ को स्वप्न दिखाये, पुष्पोत्तर तजकर प्रभु आये। जेठ श्याम षष्ठी सुखकारी, जिनपद पूजें मंगलकारी॥ ॐ ह्रींजेष्ठकृष्णषष्ट्यांगर्भमंगलमण्डिताय श्री श्रेयांसनाथ-जिनेन्द्राय अयं नि.स्वाहा। फाल्गुन कृष्ण एकादशि आई, जन्मे अनुपम मंगलदायी। क्षीरोदधि तें जल भर लावें, सुरपति प्रभु अभिषेक करावें ।। ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णैकादश्यांजन्ममंगलमण्डिताय श्री श्रेयांसनाथ-जिनेन्द्राय अयं..। विषय-कषाय असार विचारे, हो निग्रंथ परम तप धारे। फाल्गुनश्याम-एकादशि स्वामी, भावसहित हम शीश नमामी। ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णैकादश्यां तपोमंगलमण्डिताय श्री श्रेयांसनाथ-जिनेन्द्राय अय..। शुक्लध्यान धरि घाति नशाये, अनन्त चतुष्टय प्रभु प्रगटाये। माघ अमावस आनन्दकारी, पूजत होवें शिवमगचारी॥ ॐ ह्रीं माघकृष्णामावस्यां ज्ञानमंगलमण्डिताय श्री श्रेयांसनाथ-जिनेन्द्राय अयं नि. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003170
Book TitleAdhyatmik Poojan Vidhan Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra
PublisherKanjiswami Smarak Trust Devlali
Publication Year2008
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Religion, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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