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आध्यात्मिक पूजन-विधान संग्रह श्री श्रेयांसनाथ जिनपूजन
(रोला) श्रेय रूप ग्यारहवें तीर्थंकर पहिचाने। अहो अकर्ता दृष्टा ज्ञाता सहज प्रमाने । जागा भाग्य हमारा, प्रभुवर पूज रचावें ।
निजानन्द निजमाँहिं, आप सम हम भी पावें॥ ॐ ह्रीं श्री श्रेयांसनाथ-जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री श्रेयांसनाथ-जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं श्री श्रेयांसनाथ-जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
(छंद -त्रिभंगी) प्रभु देह उपजती देह विनशती, अविनाशी है शुद्धातम। यह भेद जानकर निज अनुभव कर, पूजें ध्यावें परमातम ॥ श्रेयांस जिनेन्द्रं इन्द्र नरेन्द्र, पूजत अन्तर्दृष्टि धरें।
तिहुँ जग ज्ञातारं शिवदातारं, प्रभु चरणों में नमन करें। ॐ ह्रीं श्री श्रेयांसनाथ-जिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं नि. स्वाहा ।
प्रभु चन्दन बावन ताप मिटावन, भवाताप नहीं दूर करे।
या सम नहीं दूजा श्री जिन पूजा, सहज सर्व संताप हरे॥श्रेयांस. ॥ ॐ ह्रीं श्री श्रेयांसनाथ-जिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चन्दनं नि.स्वाहा।
क्षत् भाव दुखारी हे त्रिपुरारी, त्याग अखण्डित भाव धरें।
अक्षय सुखरूपं मुक्त स्वरूपं, अक्षत ले प्रभु पूज करें॥श्रेयांस. ॥ ॐ ह्रीं श्री श्रेयांसनाथ-जिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं नि. स्वाहा ।
भोगों को भोगा, इच्छा रोगा, त्यों-त्यों अधिक बढ़ा स्वामी।
प्रभु शील बढावें काम नशावें, शिवपद पावें जगनामी ॥श्रेयांस.॥ ॐ ह्रीं श्री श्रेयांसनाथ-जिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं नि. स्वाहा। निजसुधबुध खोकर जिसवश होकर, खाद्य-अखाद्य सभी खाया।
सो क्षुधा नशावें तृप्त रहावें, निज में प्रभु सम मन भाया ॥श्रेयांस.॥ ॐ ह्रीं श्री श्रेयांसनाथ-जिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं नि. स्वाहा।
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